तीज-त्यौहारः एकादशी व्रत की महिमा और नियम

तीज-त्यौहारः एकादशी व्रत की महिमा और नियम

भोपाल (महामीडिया) एकादशी व्रत को श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. हर महीने में दो बार एकादशी व्रत पड़ते हैं. इस तरह साल भर में कुल 24 एकादशी होती हैं. एकादशी के सभी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित हैं. शास्त्रों में हर एकादशी का अलग नाम और अलग महत्व बताया गया है. चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. ये एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली मानी जाती है. इस बार पापमोचनी एकादशी का व्रत 28 मार्च को रखा जाएगा. शास्त्रों में सभी एकादशी व्रत को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है. जानिए कि आखिर एकादशी के व्रत की शुरुआत कैसे हुई थी. किसने पहला एकादशी व्रत रखा था और इसके नियम क्या हैं.
धर्मराज युधिष्ठिर को श्रीकृष्ण ने बताया था एकादशी व्रत
पद्म पुराण के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पापों से मुक्ति प्राप्त करने का साधन पूछा था. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें एकादशी व्रत की महिमा के बारे में बताया था. श्रीकृष्ण भगवान ने कहा था कि एकादशी व्रत दुःखों और त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाने वाला, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करने वाला, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाला है. भगवान श्रीकृष्ण के बताए नियमों के अनुसार युधिष्ठिर ने ये व्रत रखा था. इससे उनके सभी दुख दूर हुए थे और पापों का अंत हुआ था.
ये हैं व्रत के नियम
एकादशी व्रत के नियम कठिन हैं. इस व्रत के नियम दशमी तिथि की शाम से आरंभ हो जाते हैं और द्वादशी को व्रत पारण तक रहते हैं. दशमी के दिन सूर्यास्त से पहले साधारण बिना प्याज और लहसुन का भोजन करना चाहिए. इसके बाद एकादशी के दिन पूरी श्रद्धा के साथ भगवान का व्रत और पूजन करना चाहिए. हर एकादशी की अलग कथा है, उस कथा को पढ़ना चाहिए. व्रत के दौरान आप चाहें तो एक समय फलाहार कर सकते हैं. लेकिन निर्जला एकादशी का व्रत बिना जल ग्रहण करे ही रखना पड़ता है. एकादशी की रात में जागरण करके भगवान का भजन कीर्तन करें. उनका स्मरण करें. द्वादशी के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं, सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा दें और पैर छूकर उसका आशीर्वाद लें. इसके बाद व्रत का पारण करें.
ये भी ध्यान रखें
किसी भी व्रत का उद्देश्य मन को पवित्र करना है. एकादशी व्रत के दौरान किसी भी तरह का दूषित विचार मन में न लाएं. अगर आ भी जाए तो परमेश्वर का ध्यान कर उसे दूर करें. किसी की निंदा या चुगली न करें. किसी के साथ गलत व्यवहार न करें. ब्रह्मचर्य का पालन करें.
 

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