हरियाली तीज का महत्व

हरियाली तीज का महत्व

भोपाल (महामीडिया) कल हरियाली तीज है। सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृत्यी को हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। हरियाली तीज का त्योहार सुहागन महिलाओं के लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस पर्व का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है। मान्यता है कि माता पार्वती की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे और इसी दिन ही माता पार्वती को उनके पूर्व जन्म की कथा भी सुनाई थी।
तीज का व्रत महिलाओं के द्वारा सुख-समृद्धि, और परिवार की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इस दिन महादेव और पार्वती की पूजा करने का विधान है और महिलाएं व्रत का संकल्प लेकर शिव-पार्वती की पूजा करती है। तीज की तिथि का सनातन संस्कृति में बढ़ा महत्व है और सावन मास की तीज सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली मानी जाती है।
शिव महापुराण के अनुसार इस दिन भगवान भोलेनाथ का देवी पार्वती के साथ पुनर्मिलन हुआ था। उत्तर भारत में इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन महिलाओं को अपने मायके से आए वस्त्रों को पहनना चाहिए और इस दिन श्रंगार में भी मायके से आई हुई सामग्री का उपयोग करना चाहिए। सुयोग्य वर की कामना के लिए इस दिन कुंआरी लड़कियां हरियाली तीज के व्रत को रखती है।
हरियाली तीज की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन भगवान शिव माता पार्वती को अपने मिलन की कथा सुनाते हैं| भोलेनाथ कहते हैं कि पार्वती तुमने मुझे अपने पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया लेकिन इसके बावजूद मुझे पति के रूप में पा न सकीं। उसके बाद108 वीं बार तुमने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया। शिवजी कहते हैं – पार्वती तुमने हिमालय पर्वत पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। अपनी तपस्या के दौरान तुमने अन्न-जल का त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर अपना समय व्यतीत किया था। बारहों मास तुमने कष्ट सहे और मौसम की परवाह किए बगैर तुमने लगातार तप किया था। तुम्हारी इस अवस्था को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज हो गए थे।
तुम वन में एक गुफा के अंदर मेरी आराधना में लीन रहती थी। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की। इसके बाद तुमने अपने पिता को बताया कि ‘पिताजी, मैं अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिता चुकी हूं और भगवान भोलेनाथ ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे अपनी अर्द्धांगिनी के रूप में स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे। उस समय पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा को स्वीकार कर लिया और तुम्हें घर पर वापस ले गये।
कुछ समय बीत जाने के बाद उन्होंने पूरे विधि विधान के साथ हमारा विवाह संपन्न किया “हे पार्वती! भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो पाया था। इस व्रत का महत्त्व यह है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से प्रत्येक स्त्री को मैं मन वांछित फल मैं प्रदान करता हूं| भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण भक्तिभाव से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग की प्राप्ति होगी।

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