तीज-त्यौहारः आंवला नवमी है आज

तीज-त्यौहारः आंवला नवमी है आज

भोपाल (महामीडिया) कार्तिक माह में कई त्योहार होते हैं और हर एक त्योहार का अपना एक विशेष महत्व होता है. दीपावली के बाद आवंला नवमी का त्योहार मनाया जाता है. शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाई जाती है. आज आंवला नवमी है. इस विशेष दिन आवंले के पेड़ की पूजा की जाती है. 
आंवला नवमी में आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर ही पूजा-अर्चना के बाद भोजन किया जाता है. इस दिन आंवले को भी प्रसाद के रूप में खाने का महत्व है. इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. इस दिन किया गया कार्य शुभ माना जाता है और अक्षय फल देने वाला होता है. 
आंवला नवमी की पूजा विधि
अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है. वृक्ष की हल्दी कुमकुम आदि से पूजा करके उसमें जल और कच्चा दूध अर्पित करें. इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा करते हुए तने में कच्चा सूत या मौली आठ बार लपेटी जाती है. पूजा के बाद इसकी कथा पढ़ी और सुनी जाती है. पूजा खत्म होने के बाद परिवार और मित्रों आदि के साथ वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किए जाने का महत्व है.
आंवला नवमी कथा
मान्यता है कि आंवला नवमी पर आंवले के पेड़ के नीचे पूजा और भोजन करने की प्रथा की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी। कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी पर घूमने के लिए आईं। धरती पर आकर मां लक्ष्मी सोचने लगीं कि भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा एक साथ कैसे की जा सकती है। तभी उन्हें याद आया कि तुलसी और बेल के गुण आंवले में पाए जाते हैं। तुलसी भगवान विष्णु को और बेल शिवजी को प्रिय है।
उसके बाद मां लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ की पूजा करने का निश्चय किया। मां लक्ष्मी की भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिवजी साक्षात प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार करके भगवान विष्णु व शिवजी को भोजन कराया और उसके बाद उन्होंने खुद भी वहीं भोजन ग्रहण किया। मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन अगर कोई महिला आंवले के पेड़ की पूजा कर उसके नीचे बैठकर भोजन ग्रहण करती है, तो भगवान विष्णु और शिवजी उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतना की दीर्घायु तथा अच्छे स्वास्थ्य लेकर कामना करती हैं।
 

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