तीज-त्यौहारः होलिका दहन आज
भोपाल (महामीडिया) फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है. इस दिन लोग होलिका की पूजा और दहन के बाद ही भोजन आदि करते हैं. धार्मिक दृष्टि से होली का त्योहार बहुत महत्व रखता है. होलिका दहन आज होगा. वहीं, रंगवाली होली कल खेली जाएगी. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है. 'होलिका दहन' वाले दिन को लोग 'छोटी होली' भी कहते हैं. कुछ जगहों पर छोटी होली के दिन मां बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत भी रखती हैं.
होलिका दहन शुभ मुहूर्त
होलिका दहन आज किया जाएगा. होलिका दहन की पूजा का शुभ मुहूर्त 9 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक रहेगा. ऐसे में लोगों को होलिका दहन की पूजा के लिए लगभग एक घंटे का ही समय मिलेगा.
होलिका दहन पूजा सामग्री
एक लोटा जल, गाय के गोबर से बनी माला, अक्षत, गंध, पुष्प, माला, रोली, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, गेंहू की बालियां.
विधि
- पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठे।
- सभी पूजन सामग्री को एक थाली में रखें।
- फिर पूजा थाली पर और खुद पर पानी छिड़कें।
- फिर मंत्र का जाप करें।
- अब दाएं हाथ में जल, चावल, फूल और एक सिक्का लेकर संकल्प लें।
- दाहिने हाथ में फूल और चावल लेकर भगवान गणेश, मां दुर्गा और हनुमान जी ध्यान करें।
- अब भगवान नरसिंह का स्मरण करें।
- पुष्प पर रोली और चावल लगाकर भगवान को अर्पित करें।
- अबो होलिका यावनी लकड़ी पर अक्षत, धूप, पुष्प, मूंग दाल, हल्दी के टुकड़े, नारियल और गाय के गोबर से बनी माला अर्पित करें।
- और फिर उसमें आग लगाएं और चारो ओर परिक्रमा करें।
- होलिका के ढेर के सामने लोटे के जल को पूरा अर्पित करें और भस्म अपने माथे पर लगाएं और अग्नि को प्रणाम करें।
होली से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर राजा था. उसने घमंड में चूर होकर खुद के ईश्वर होने का दावा किया था. इतना ही नहीं, हिरण्यकश्यप ने राज्य में ईश्वर के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था. वहीं, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को आग में भस्म न होने का वरदान मिला हुआ था. एक बार हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए. लेकिन आग में बैठने पर होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया. और तब से ही ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होलीका दहन किया जाने लगा.
एक अन्य मान्यता के अनुसार होली का त्योहार राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में मनाया जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा था कि वो राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं. इस पर यशोदा ने मजाक में कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा. इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है.