तीज-त्योहारः नहाय खाए के साथ शुरू हुआ जीवित्पुत्रिका व्रत
भोपाल (महामीडिया) आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है. इस व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत भी कहते हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने संतान की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की लंबी उम्र होती है. ये व्रत मुख्यरूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में होता है.
जितिया का व्रत बहुत कठिन होता है. इसमें छठ की तरह पहले दिन नहाएं खाए, दूसरे दिन जितिया निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण किया जा है. जितिया का व्रत आज से शुरू हो गया है जो 30 सितंबर तक चलेगा.
ये सबसे कठिन व्रत में से एक होता है. ये व्रत तीन दिन तक चलता है. पहले दिन नहाए खाए. दूसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण किया जाता है.
जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि
महिलाएं पुत्र की लंबी उम्र के लिए जीमूतवाहन की पूजा अर्चना करती है. सबसे पहले जीमूतवाहन भगवान को धूप, दीप, फूल और अक्षत चढ़ाएं. इस दिन चील और सियार की मूर्ति की भी पुजा की जाती है. इसके बाद व्रत कथा सुनें और बाद में आरती करें. इन दिन पेड़ा, दूब, खड़ चावल, इलायची ,पान, सुपारी चढ़ाया जाता है. महिलाएं जितिया के दिन सरसों के तेल और खली चढ़ाई जाती है. इन चीजों को चढ़ाने से बच्चों को किसी प्रकार की बुरी नजर नहीं लगती है.
महाभारत काल से है संबंध
जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध महाभारत काल से है. दरअसल महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा अपने पिता की मौत से बहुत क्रोधित थे और हर हाल में पांडवों से बदला लेना चाहते थे. इसलिए वह पांडवों के शिविर में घुस गए और उसमें सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला. वे सभी द्रपदी की संताने थे. अर्जुन ने अश्वत्थामा की मणि छीन ली और क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला.
श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चें को पुन जीवित कर दिया. भगवान कृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया. इसक बाद से संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल जितिया का व्रत रखा जाता है.
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
माना जाता है कि जो महिला अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं उसकी संतान को कभी भी दुख नहीं उठाना पड़ता है और उनके घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है. मान्यता है जो भी महिला इस व्रत की कथा सुनती है उसे कभी भी अपनी संतान से वियोग का सामना नहीं कर पड़ता है.