तीज-त्यौहारः गुड़ी पड़वा का महत्व 

तीज-त्यौहारः गुड़ी पड़वा का महत्व 

भोपाल (महामीडिया) गुड़ी पड़वा का त्योहार विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश की तरफ जोर शोर से मनाया जाता है. इसे उगादी, युगादी, छेती चांद जैसे नामों से भी जाना जाता है. हिंदू कैलेंडर के हिसाब से गुड़ी पड़वा के दिन से ही चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है और इसी दिन से हिंदू नववर्ष भी प्रारंभ होता है. इस बार गुड़ी पड़वा का पर्व 2 अप्रैल को शनिवार के दिन पड़ रहा है. गुड़ी पड़वा को लेकर और भी कई तरह की बातें प्रचलित हैं. कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का सृजन किया था और इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी. ये भी मान्यता है कि त्रेतायुग में नारायण अवतार प्रभु श्रीराम ने गुड़ी पड़वा के दिन बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से मुक्त कराया था. 
गुड़ी पड़वा शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि 01 अप्रैल शुक्रवार को दिन में 11 बजकर 53 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 02 अप्रैल शनिवार को 11 बजकर 58 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि के हिसाब से इस पर्व को 02 अप्रैल को मनाया जाएगा. इस दिन अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहे हैं. इन दोनों ही योग को काफी शुभ फलदायी माना गया है.
गुड़ी पड़वा से जुड़ी खास बातें
‘गुड़ी’ शब्द का अर्थ ‘विजय पताका’ और पड़वा का अर्थ प्रतिपदा तिथि. इस दिन महिलाएं सुबह स्नान आदि के पश्चात विजय के प्रतीक के रूप में घर में सुंदर गुड़ी लगाती हैं और उसका पूजन करती हैं. माना जाता है कि इससे वहां नकारात्मकता दूर होती है और घर में खुशहाली आती है. कहा जाता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम ने जब बालि का वध किया, तो लोगों ने खुशी के तौर पर घरों में रंगोली बनाई और अपने घरों में विजय पताका फहराया था. इसे ही गुड़ी कहा जाता है. तब से आज भी ये प्रथा कायम है और इसे विजय दिवस के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है.
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली बनाई जाती है. इसी पावन पर्व पर यहां लोग आम का सेवन शुरू करते हैं. कुछ स्थानों पर गुड़ी पड़वा के दिन नीम की पत्तियां खाने का भी चलन है.
इस पर्व पर सूर्य उपासना का भी चलन है. लोग सूर्य उपासना करके उनसे सुख-समृद्धि व आरोग्य की कामना करते हैं. गुड़ी पड़वा के दिन मराठी महिलाएं 9 गज लंबी साड़ी पहनती हैं तो वहीं पुरुष लाल या केसरिया पगड़ी के साथ कुर्ता-धोती या पैजामा पहनते हैं.
ये भी मान्यता है कि वीर मराठा छत्रपति शिवाजी जी ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया था. इसी के बाद से ही महाराष्ट्र में इस पर्व को मनाने की परंपरा शुरू हुई. गुड़ी पड़वा को गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय संवत्सर पड़वो के नाम से मनाते हैं. कर्नाटक में इसे युगादि और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादी के नाम से मनाया जाता है.
 

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