भगवान श्रीगणेश का एक अवतार "महोदर" भी है
भोपाल (महामीडिया) मानव के कल्याणार्थ इस धरा पर कई देवी-देवता अवतरित हुये हैं. भगवान श्रीगणेश भी उन्हीं अवतारों में से एक हैं. भगवान श्रीगणेश ने आसुरी शक्तियों से मानव जाति को मुक्त कराने हेतु अवतार लिए हैं. इसका वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण आदि ग्रंथों में मिलता है. भगवान श्रीगणेश के अवतारों की संख्या 8 बताई गई है जो इस प्रकार है- वक्रतुंड, गजानन, एकदंत, विघ्नराज, महोदर, लंबोदर, विकट, और धूम्रवर्ण। भगवान श्रीगणेश ने महोदर रूप में मोहासुर नाम के राक्षस को परास्त किया था. मोहासुर दैत्यगुरु शुक्राचार्य का एक शिष्य था. मोहासुर ने अपने तप से सूर्य देव को प्रसन्न कर उनसे सर्वत्र विजय का वरदान प्राप्त किया था. तत्पश्चात् दैत्य गुरू शुक्राचार्य ने उसे असुरों का राजा घोषित कर दिया. उसने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर आतंक का साम्राज्य फैला दिया था. इसी आतंक के निवारण हेतु भगवान श्रीगणेश अपने तीसरे अवतार में महोदर बनकर आये. जब सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि इस आतंक से आक्रांत हो गये और इसके निवारण हेतु सूर्य देव की शरण में गये. सूर्यदेव ने उन्हें श्री गणेश का एकाक्षरी मंत्र बताया और श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए कहा. सभी ने ऐसा ही किया तब इन सभी की तपस्या से प्रसन्न होकर श्री गणेश महोदर रूप में अवतरित हुये. भगवान श्रीगणेश अपने वाहन मूषक पर सवार होकर दैत्य राज को सबक सिखाने चल दिए. इधर नारद मुनि ने भी मोहासुर को भगवान महोदर की शक्ति से परिचित कराया एवं गुरू शुक्राचार्य ने भी उसे समझाया. भगवान श्रीहरि विष्णु ने भी कहा कि आप महोदर को नहीं हरा सकते इसलिए अच्छा होगा कि उनसे क्षमा याचना कर लें. इन बातों को सुनकर मोहासुर का हृदय परिवर्तन हुआ, उसका अहंकार नष्ट हो गया। उसने सम्मान सहित भगवान महोदर की शरण ग्रहण की तथा पापक्रम से दूर रहने का वचन दिया. भगवान महोदर ने उसे जीवन दान देकर सभी देवताओं और समस्त ब्रह्मांड को उसके कष्टों से मुक्त किया.