अक्षय तृतीया महापर्व बाईस अप्रैल को 

अक्षय तृतीया महापर्व बाईस अप्रैल को 

ऋषिकेश [ महामीडिया] पावन पर्व अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व इस बार 22 अप्रैल, शनिवार को मनाया जाएगा। इस तिथि की अधिष्ठात्री देवी पार्वती हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार त्रेता और सतयुग का आरंभ भी इसी तिथि को हुआ था,इसलिए इसे कृतयुगादि तृतीया भी कहते हैं। यह तिथि स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त मानी गई है। इस दिन कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, घर, भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी से सम्बंधित कार्य किए जा सकते हैं। तृतीया तिथि को पार्वती जी ने अमोघ फल देने की सामर्थ्य का आशीर्वाद दिया था। उस आशीर्वाद के प्रभाव से इस तिथि को किया गया कोई भी कार्य निष्फल नहीं होता। व्यापार आरम्भ, गृह प्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, दान-पुण्य, पूजा-पाठ अक्षय रहता है अर्थात वह कभी नष्ट नहीं होता। धर्मराज को इस तिथि का महत्व समझाते हुए माता पार्वती कहती हैं कि कोई भी स्त्री, जो किसी भी तरह का सुख चाहती है उसे यह व्रत करते हुए नमक का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए। स्वयं में भी यही व्रत करके मैं भगवान शिव के साथ आनंदित रहती हूँ। विवाह योग्य कन्याओं को भी उत्तम वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए। जिनको संतान नहीं हो रही हो वे स्त्रियां भी इस व्रत करके संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं। प्रजापति दक्ष की पुत्री रोहिणी इसी व्रत के कारण अपने पति चंद्र की सबसे प्रिय रानी रहीं। स्वर्ग के राजा इंद्र की पत्नी देवी इंद्राणी इसी व्रत के पुण्य प्रताप से जयंत नामक पुत्र की मां बनी। देवी अरुंधति ने यही व्रत करके अपने पति महर्षि वशिष्ठ के साथ आकाश में सबसे ऊपर का स्थान प्राप्त किया।

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