मकर संक्रांति की पौराणिक कथा 

 मकर संक्रांति की पौराणिक कथा 

भोपाल [ महामीडिया] मकर संक्रांति का त्योहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। संक्रांति पर सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन सूरज की यात्रा दक्षिणायन से उत्तरायण दिशा में होने लगती है। सूर्य के मकर राशि में गोचर करते ही खरमास समाप्त होगा। वह शुभ कार्य आरंभ होंगे। मकर संक्रांति पर दान पु्ण्य का भी बड़ा महत्व है। इस दिन तिल का दान किया जाता है। इससे शनिदेव और भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं। आइए जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथा और क्यों तिलों का दान करना शुभ है।पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य देव की दो पत्नियां थीं। एक का नाम छाया और दूसरी का नाम संज्ञा था। सूर्य देव की पत्नी छाया के पुत्र शनि देव थे। शनि देव को सूर्य बिल्कुल पसंद नहीं करते। एक दिन सूर्य देव ने छाया और शनि देव को एक घर दिया। जिसका नाम कुंभ था। काल चक्र के अनुसार 11वीं राशि कुंभ है। सूर्य ने घर देकर शनि देव को अलग कर दिया। सूरज देव के इस कदम से छाया काफी क्रोधित हो उठीं। उन्होंने सूर्य देव को कुष्ट रोग का श्राप दे दिया। देव की पीड़ा देख उनकी दूसरी पत्नी संज्ञा ने भगवान यमराज की आराधना की। संज्ञा की तपस्या से प्रसन्न होकर यमराज सूर्य देव को श्राप से मुक्ति दिलाते हैं।सूर्य देव जब स्वस्थ्य हो जाते हैं। फिर कुंभ को जला देते हैं। जिसके बाद शनि देव और छाया बिना घर से घूमने लगते हैं। तब संज्ञा सूर्य देव से शनि और छाया को माफ करने की विनती करती हैं। इसके बाद सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने जाते हैं। शनि देव अपने पिता का तिलों से स्वागत करते है। इससे भगवान सूर्य काफी प्रसन्न होते हैं। वह शनि को दूसरा घर देते हैं। जिसका नाम मकर है। इसके बाद शनि के पास दो घर हो जाते हैं।मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन पूजा, यज्ञ, दान और तिल का सेवन करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। वह सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

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