कल्पवास का धार्मिक महत्व एवं नियम

कल्पवास का धार्मिक महत्व एवं नियम

प्रयागराज (महामीडिया) गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर हर 12 साल पर महाकुंभ मेला और 06 साल में कुंभ मेला के बारे में आप सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि प्रयागराज की धरती पर हर साल एक मिनी कुंभ भी लगता है, जिसे लोग माघ मेला के नाम से जानते हैं. इसी माघ मेले मे लगता है आस्था का जमगघट, जिसमें यहां पर लाखों की संख्या में लोग कड़कड़ाती ठंड में कल्पवास करते हैं. आखिर क्या होता है ये कल्पवास, जानते हैं इसका धार्मिक महत्व और नियम.
तीर्थों के राजा प्रयागराज में हर साल लगने वाले माघ मेले में पौष मास की पूर्णिमा से कल्पवास की शुरुआत होती है. संगम की रेती पर कड़कड़ाती ठंड में जप-तप, स्नान-दान, कीर्तन-प्रवचन आदि के लिए तंबुओं की एक बड़ी धार्मिक नगरी तैयार होती है, जिसमें श्रद्धालु कल्पवास से जुड़े नियम और परंपरा का पालन करते हुए पूरे एक माह कल्पवास का व्रत करते हैं.
प्रयागराज में कुछ तीर्थयात्री मकर संक्रांति से माघ शुक्ल पक्ष की संक्रांति तक कल्पवास करते हैं तो वहीं कुछ श्रद्धालु पौष मास की पूर्णिमा से माघ मास पूर्णिमा तक इस कठिन व्रत को रखते हैं. हालां​कि अधिकांश श्रद्धालु पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक ही कल्पवास करते हैं.
महाभारत के अनुसार एक सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने का जो फल है, माघ मास में कल्पवास करने से प्राप्त हो जाता है. यही कारण है कि श्रद्धालुओं के साथ देश के कोने-कोने से शैव, वैष्णव, शाक्त समेत सभी परंपराओं के संत भी इस धार्मिक मेले में पहुंचते हैं. इस महामेले में पूरे एक माह आपको तमाम जगह पर साधु अपनी धूनी रमाए तपस्यारत या फिर कीर्तन-प्रवचन करते नजर आ जाएंगे.
प्रयाग राज में में लगने वाले इस धार्मिक मेले में संगम में स्नान के कई पावन पर्व पड़ते हैं, जिस पर संगम में न सिर्फ कल्पवासी बल्कि दूर-दूर से लोग आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचते है. इस साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति, 17 जनवरी को पौष पूर्णिमा, 01 फरवरी को मौनी अमावस्या, 05 फरवरी को वसंत पंचमी, 08 फरवरी को अचला सप्तमी, 16 फरवरी को माघी पूर्णिमा और 01 मार्च को महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर श्रद्धालु संगम पर स्नान करेंगे.
मान्यता है कि माघ मास में सभी तीर्थों को अपने राजा से मिलने प्रयागराज आना पड़ता है और गंगा-यमुना और सरस्वती के पावन संगम में सभी तीर्थ और उनसे जुड़े देवता स्नान करके धन्य हो जाते हैं. इस दिव्य अवसर पर आस्था की डुबकी लगाने वाले कल्पवासी को भी अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और उसका कायाकल्प हो जाता है.
कड़कड़ाती ठंड के बीच माघ मेले में कल्पवास करना किसी तपस्या से कम नहीं होता है. यहां पर कल्पवास गंगा-यमुना की रेत पर बने टेंट में ही खाते-पीते ओर सोते हैं. एक कल्पवासी को पूरी एक महीने तक प्रतिदिन सुबह-शाम गंगा स्नान-दान और स्वयं से भोजन बनाकर खाना-पीना होता है. आस्था के इस कठिन नियम के बावजूद दूर-दूर से नंगे पांव, सिर पर गठरी-मुठरी रखकर श्रद्धालु यहां पर पुण्य प्राप्ति की चाह में खिंचे चले आते हैं.
 

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