तीज-त्यौहारः नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना

तीज-त्यौहारः नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना

भोपाल (महामीडिया) आज चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है। षष्टी तिथि रात 8 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। उसके बाद सप्तमी तिथि लग जाएगी। नवरात्रि के छठे दिन देवी दुर्गा के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। ऋषि कात्यायन के यहां जन्म लेने के कारण देवी मां को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है । मां दुर्गा का ये स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य है। इनका रंग सोने के समान चमकीला है, तो इनकी चार भुजाओं में से ऊपरी बायें हाथ में तलवार और निचले बायें हाथ में कमल का फूल है।
गोपियों ने की थी मां कात्यायनी की पूजा
माना जाता है कि- भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिन्दी यमुना के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी । इसलिए देवी मां को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी पूजा जाता है। 
कन्या के विवाह में आ रही परेशानियों को हरेंगी मां कात्यायनी
अगर आपकी कन्या के विवाह में किसी प्रकार की परेशानी आ रही है तो आज मां कात्यायनी के इस मंत्र का जप करें। मंत्र है- 
‘ऊँ क्लीं कात्यायनी महामाया महायोगिन्य घीश्वरी,
नन्द गोप सुतं देवि पतिं मे कुरुते नमः।।’

षष्ठी तिथि में बेल के वृक्ष का महत्व
दुर्गार्चन पद्धति के अनुसार आज षष्ठी तिथि में शाम के समय व्रती को बेल के पेड़ के पास जाकर देवी मां का बोधन करना चाहिए। बेल के पेड़ पर थोड़ी मिट्टी, इत्र, पत्थर, 7 अनाज, दूर्वा, फल, फूल, दही और घी चढ़ाने के बाद सिंदूर से स्वास्तिक बनाना चाहिए और उसे दुर्गा के निवास के योग्य बनाना चाहिए।
इसके बाद वापस घर में दुर्गा पूजा स्थान पर आकर देवी मां का आचमन करना चाहिए और अपराजिता की लता पूजा स्थान पर लगानी चाहिए। अगर अपराजिता की लता न मिले तो 9 पौधों की पत्तियों को एक में गूंथने का विधान है। वो नौ पौधे हैं- कदली यानि केला, दाड़िम यानि अनार, धान्य, हरिद्रा, माणक, कचु, बिल्व, अशोक और जयंती । जरूरी नहीं है कि इनमें से सारी पत्तियां आपको मिल ही जायें, आपको जो-जो मिल जाये उन्हें एक साथ गूंथकर देवी के मंडप में लगाइये । कुछ लोग इस दिन मिट्टी से बनी दुर्गा जी की मूर्ति को भी घर में स्थापित करते हैं।
 

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