महाकुंभ से वाराणसी जाने की परंपरा

महाकुंभ से वाराणसी जाने की परंपरा

प्रयागराज [ महा मीडिया]  प्रयागराज महाकुंभ में तीन अमृत स्नान के बाद सभी 7 शैव यानी संन्यासी अखाड़े वाराणसी कूच कर गए हैं। अब काशी के घाटों और मठों में नागा संन्यासियों के दर्शन हो रहे हैं।प्रयागराज कुंभ या महाकुंभ के बाद अखाड़ों के काशी जाने की परंपरा आदिशंकराचार्य ने शुरू की थी। तब से यह परंपरा चली आ रही है। अखाड़े 6 साल पर लगने वाले अर्धकुंभ या 12 साल पर लगने वाले कुंभ के बाद ही काशी जाते हैं। 12 साल में दो बार ही ऐसे मौके आते हैं।अखाड़ों के प्रयागराज से काशी जाने की कहानी महाकुंभ में सभी अखाड़े के साधु-संत, संन्यासी, नागा-वैरागी, नर-नारी, देव और किन्नर गंगा-यमुना-सरस्वती के त्रिवेणी में ग्रहीय संयोग में डुबकी लगाकर मां गंगा को अपना सर्वस्व दान करते हैं।

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