
म.प्र.की प्रशासनिक व्यवस्था परामर्शी सेवाओं के सहारे
भोपाल [महामीडिया] म.प्र. में सरकार नई भर्तियां करने की बजाय परामर्श सेवाओं के तहत काम ले रही है। आलम यह है कि मध्य प्रदेश में कई विभागों में प्रशासनिक कामकाज रिटायर्ड अफसरों की परामर्शी सेवाओं पर निर्भर हो गया है। रिटायर्ड अफसर संविदा नियुक्ति और परामर्श सेवाओं के तहत काम कर रहे हैं यहां तक कि वे नोटशीट भी लिख रहे हैं जबकि अंतिम हस्ताक्षर नियमित अफसर करते हैं। इससे प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित हो रही है और खाली पदों के कारण एक ही अधिकारी कई जिम्मेदारियां संभाल रहा है। खाली पदों को भरने के लिए सरकार रिटायर्ड अफसरों को परामर्शदाता या सलाहकार के रूप में नियुक्त कर रही है। इसका नतीजा यह है कि कई अफसर रिटायरमेंट के बाद भी रिटायर नहीं हो रहे। उम्र 70 हो चुकी है लेकिन उसी विभाग में जमे हैं। मानदेय भी 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक है। बस पदनाम बदल गया है। अब यह नियमित के बजाय परामर्शी सेवा दे रहे हैं। सभी विभागों को देखें तो परामर्शी सेवा वाले 100 से ज्यादा अफसर हैं। हालात ऐसे हैं कि 62 की उम्र में रिटायरमेंट के बाद पहले संविदा नियुक्ति दी जा रही है और फिर परामर्शी सेवा ली जा रही है। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने जीएडी में परामर्शी सेवाओं पर आपत्ति जताई थी उन्होंने सेवावृद्धि, संविदा नियुक्ति और परामर्शी सेवाओं पर रोक लगाने को कहा था। बावजूद ऐसे अफसरों को हटाना तो दूर परामर्शी और विशेषज्ञ सेवाएं लेने के लिए सालाना 20 लाख रुपए के बजट की मंजूरी ले ली गई जिससे संविदा नियुक्ति के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव न भेजना पड़े।