
यूजीसी के शिक्षण आधारित पाठ्यक्रम ढांचा ड्राफ्ट पर विवाद गहराया
भोपाल [महामीडिया] विश्वविद्यालय अनुदान आयोग 20 अगस्त 2025 को अपना नया शिक्षण आधारित पाठ्यक्रम ढांचा ड्राफ्ट जारी किया है। इसमें स्नातक के 9 विषयों के लिए माइथोलॉजी और भारतीय इतिहास से जुड़े टॉपिक्स शामिल हैं। इस ड्राफ्ट में मैथ्स, केमिस्ट्री, कॉमर्स जैसे विषयों में भारतीय इतिहास, कालगणना और बीजगणित जैसे टॉपिक्स को जोड़ने का सुझाव दिया गया है। इनमें से गणित, रसायनशास्त्र, अर्थशास्त्र और कॉमर्स के टॉपिक्स पर विवाद शुरू हुआ है। नए ड्राफ्ट के मुताबिक गणित के अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स सूर्य सिद्धांत के जरिए युग और कल्प के बारे में पढ़ेंगे साथ ही विष्णु वर्ष और शिव वर्ष जैसे दिव्य समय चक्र समझेंगे। इसके अलावा सूत्रों मे अंक गणना, काल गणना, शुल्ब सूत्रों से ज्यामिति, परावर्त्य योजयात सूत्र, पंचांग और मुहूर्त देखना सिखाया जाएगा। वहीं कॉमर्स में भगवत गीता और रामायण से भारतीय मैनेजमेंट के सिद्धांत, मारवाड़ी बनियास और गुजरातियों के बिजनेस मॉडल के साथ वेदों उपनिषदों पुराणों से एथिक्स भी बताएंगे। इस ड्राफ्ट पर विभिन्न विश्वविद्यालयों और शिक्षाविदों से 20 सितंबर तक फीडबैक मांगा गया है। यह कोर्स का हिस्सा कब से बनेंगे इसको लेकर अभी तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कोई जानकारी नहीं दी है। इस ड्राफ्ट को लेकर कई स्टूडेंट और टीचर्स ग्रुप्स ने नाराजगी जताई है।
आलोचकों का कहना है कि अगर स्वतंत्रता आंदोलन को सिर्फ सावरकर के नजरिए से पढ़ाया गया तो यह आंदोलन की विविधता और व्यापकता को कम कर देगा। उनका मानना है कि स्वतंत्रता संग्राम में गांधी, नेहरू, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस समेत कई धाराएं थीं जिन्हें संतुलित तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर कुछ शिक्षाविदों का मानना है कि सावरकर के योगदान को नजरअंदाज करना भी इतिहास के साथ अन्याय होगा। उनका कहना है कि छात्रों को हर दृष्टिकोण से परिचित कराना जरूरी है ताकि वे स्वयं सही निष्कर्ष तक पहुंच सकें।