पर्यावरणीय स्वीकृतियों के पुनरावलोकन का रास्ता खुलेगा

पर्यावरणीय स्वीकृतियों के पुनरावलोकन का रास्ता खुलेगा

भोपाल [महामीडिया] सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मई 2025 के अपने  निर्णय को इस सप्ताह वापस लेने से पर्यावरणीय स्वीकृतियों के पुनरावलोकन का रास्ता फिर से खुल सकता है। यह भारत के पर्यावरणीय विनियमन में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव को दर्शाता है। इससे पहले के मामलों में यह स्पष्ट किया गया था कि पर्यावरणीय मंजूरी पहले हासिल करना जरूरी है। वनशक्ति बनाम भारत संघ मामले में न्यायालय ने एक बार फिर पोस्ट फैक्टो यानी बाद में पर्यावरणीय मंजूरी को खारिज किया। अब देश के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के नेतृत्व वाले पीठ ने बहुमत से उस निर्णय को वापस ले लिया और कहा कि पहले वाले आदेश के कारण बड़े पैमाने पर वित्तीय नुकसान का जोखिम था बड़ी सार्वजनिक परियोजनाएं बेपटरी हो सकती थीं और डेवलपर्स में अनिश्चितता का माहौल बन सकता था। व्यावहारिक चिंताएं उन संवैधानिक बुनियादों की जगह नहीं ले सकतीं जिन पर देश का पर्यावरणीय संचालन आधारित है। स्वच्छ हवा का अधिकार और प्रदूषण रहित वातावरण हमारा मूल अधिकार है और न्यायालय स्वयं बार-बार इस बात की पुष्टि कर चुका है। बाद में दी जाने वाली मंजूरियां एहतियाती सिद्धांत को कमजोर करती हैं, जिसका मूल विचार यह है कि पर्यावरणीय नुकसान को उसके घटित होने से पहले ही टालना चाहिए। इससे यह जोखिम पैदा होता है कि पर्यावरणीय समीक्षा एक औपचारिकता बनकर रह जाए, न कि एक सुरक्षा उपाय। यह चिंता आज विशेष रूप से प्रासंगिक है, जब लंबे समय तक वायु प्रदूषण की घटनाएं, भूजल का क्षय, वनों की कटाई और जलवायु प्रभाव पहले से ही भारी स्वास्थ्य और आर्थिक लागतें थोप रहे हैं। मंत्रालय ने अकेले वर्ष 2024 में 500 से अधिक पर्यावरण मंजूरियां दीं। इससे यह बात जाहिर होती है कि कितनी बड़ी तादाद में परियोजनाएं कठोर पर्यावरण निगरानी की मोहताज हैं। बिना अनुमति काम शुरू करने वाले बिल्डरों के उल्लंघनों को सामान्य मानकर उसे हल्का करना और अक्सर बुनियादी परियोजना विवरण तक का खुलासा न करना, प्रणालीगत अनुपालनहीनता को गहराई से स्थापित करने का जोखिम पैदा करता है।

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