बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुआवजे में देरी को संवैधानिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन ठहराया
मुंबई [ महामीडिया] बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी को व्यक्ति को मुआवज़ा न देने के लिए फटकार लगाई, जिसकी ज़मीन 36 साल पहले उसके द्वारा अधिग्रहित की गई थी। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह निष्क्रियता व्यक्ति के संवैधानिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता की ज़मीन का प्लॉट 1988 में अधिग्रहित किया गया था। इस मामले पर पहली बार 2003 में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विचार किया था । इन सभी वर्षों में प्रतिवादी अधिकारियों ने न तो कोई अभिलेख प्रस्तुत किया और न ही याचिकाकर्ता को मुआवजा दिया। इस प्रकार हाईकोर्ट ने मामले को अंतिम निपटान के लिए अपने हाथ में ले लिया। जस्टिस एम.एस. सोनक और जस्टिस कमल खता की खंडपीठ ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि अधिग्रहण के 36 वर्ष बीत जाने के बावजूद प्रतिवादी अधिकारियों ने अधिग्रहण अभिलेखों का पता नहीं लगाया। मुआवजे की राशि निर्धारित करने के लिए कोई अभ्यास नहीं किया। प्रतिवादी अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को मुआवजा न देने में अत्यधिक देरी के लिए कोई कारण नहीं बता पाए ।