राजधानी फर्जी गृह निर्माण समितियों की गिरफ्त में

राजधानी फर्जी गृह निर्माण समितियों की गिरफ्त में

भोपाल [ महामीडिया] शहर में गृहनिर्माण समितियों में फर्जीवाड़ा थमने का नाम नहीं ले रहा है। वर्षों पहले अपनी जमा पूंजी लगाकर सदस्य बने लोग अब भी प्लाट के लिए यहां -वहां भटक रहे हैं।वहीं गृहनिर्माण समितियों द्वारा मोटा मुनाफा कमा कर बिल्डरों से जमीन का सौदा किया जा रहा है। शहर की ऐसी ही तीन गृहनिर्माण समिति सामने आई हैं, जहां पर सदस्यों के हिस्से की जमीन को बिल्डरों को सौंप दिया गया। इस मामले के सामने आने के बाद सहकारिता विभाग ने जांच शुरू कर दी है। वहीं दूसरी तरफ सदस्य समितियों में जमा किए पैसों की रशीद लेकर न्याय के लिए भटक रहे हैं। जिले में रजिस्टर्ड 581 गृह निर्माण समितियों में से मात्र 200 ऐसी हैं, जो ठीक ठाक काम कर रही हैं। बाकी में शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। किसी में गैर सदस्यों को प्लाट बेच दिए गए तो कहीं बिल्डरों ने कालोनी बना दी।इस मामले में दो दर्जन से अधिक समितियों के कर्ताधर्ताओं पर पूर्व में एफआईआर भी दर्ज कराई गई, लेकिन इस पर रोक नहीं लग सकी।अब शहर की तीन समिति टीलाजमालपुरा, निराला नगर और मालाबार गृह निर्माण समितियों में फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है। इन समितियों के संचालक मंडल ने सदस्यों की जमीनों को बिल्डरों को बेच दिया। अब यहां पर इमारते खड़ी हो रही हैं। सदस्यों के द्वारा शिकायत करने पर अब सहकारिता विभाग ने इसकी जांच शुरू कर दी है। प्राथमिक जांच में शिकायतें सही मिली हैं। विभागीय अफसरों का कहना है कि जांच के बाद समितियों के संचालक मंडल पर एफआईआर कराई जा सकती है। इन समितियों में सदस्य बनाए गए थे। इन्हें प्लाट देने का वादा किया गया था। इसके बाद सैकड़ों सदस्यों ने जमीन लेने के लिए राशि भी जमा की थी, लेकिन अब उन्हें प्लाट नहीं दिए जा रहे हैं। इनके हिस्से के प्लाट बिल्डरों को बेच दिए गए है। बिल्डरों ने भी कम कीमत पर जमीन लेकर करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। गृह निर्माण समितियों में सबसे ज्यादा फर्जी वाड़ा जिन समितियों में हुआ है। इनमें कामधेनू गृह निर्माण समिति, सर्वोदय , रोहित गृह, स्वजन गृह , सौरभ गृह निर्माण, हजरत निजामुद्दीन, सर्वधर्म, कान्हा, शिव, अपैक्स बैंक, विकास कुंज, गुलाबीनगर, निशातपुरा, लावण्य गुरुकुल, पल्लवी, राजहर्ष, नर्मदा, पुष्प विहार, अमलताश, मंदाकिनी सहित कई समितियां हैं, जिनके पीड़ित आज भी सहकारिता विभाग के चक्कर काट रहे हैं।

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