छलनी से चंद्रदर्शन करवाचौथ की पहचान है
भोपाल (महामीडिया) करवाचौथ कल है। करवाचौथ की पूजा की बात हो, तो सबसे पहली छवि बनती है छलनी से चांद को देखती सजी-धजी सुहागिन की। यह एक ऐसा दृश्य है, जो करवाचौथ की पूजा को विशिष्ट और सबसे अलग बनाता है। शायद ही कोई और पूजा होगी, जिसका प्रतीक इतना जीवंत, इतना अनूठा हो। इस दृश्य को देखते ही हर कोई समझ जाता है कि करवाचौथ की पूजा हो रही है। कहा जा सकता है कि छलनी से चंद्रदर्शन करवाचौथ की पूजा की पहचान बन गया है।
क्या कारण है इस अनूठी रस्म का
भारत में सौभाग्य और दाम्पत्य प्रेम से जुड़ी हर कथा का आधार हैं, शिव-पार्वती। वास्तव में सृष्टि का आरंभ ही शिव- पार्वती के प्रेम और विवाह के साथ ही हुआ है और आज भी इनका प्रेम दाम्पत्य का आधार बना हुआ है। ऐसे में सौभाग्य पर्व करवाचौथ में उनके नाम के बिना कहानी आगे कैसे बढ सकती है। करवाचौथ की कथा भी भगवान शिव से परोक्ष रूप से जुड़ी है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि पर्वतराज दक्ष की 27 कन्याएं थीं। सभी कन्याएं रूप- गुणों में अनुपम थीं। दक्ष ने अपनी सभी कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था। इन सभी पत्नियों में से रोहिणी चंद्रमा को विशेष प्रिय थीं। इससे बाकी पत्नियां आहत होती थीं। सभी कन्याओं ने पिता दक्ष से शिकायत की। दक्ष ने चन्द्रमा को बहुत समझाया, पर वे न माने और रोहिणी को विशेष महत्व देते रहे। तब दक्ष ने चन्द्रमा को जर्जर और कांतिहीन होने का श्राप दे दिया। चन्द्रमा की यह दशा देखकर नारद जी ने उन्हें शिव जी की आराधना करने का सुझाव दिया। शिव जी ने चन्द्रमा के तप से प्रसन्न होकर उन्हें दीर्घायु होने का आशीर्वाद दिया और दक्ष के श्राप को मद्धिम किया।
शिव जी का यही वरदान बाद में सुहागिनों की करवा पूजा का आधार बना। करवाचौथ की रात सुहागिनें पूजा करने के बाद छलनी से चांद देखती हैं और इसके बाद पति के दर्शन भी उसी छलनी से करती हैं। इसके पीछे भावना यह रहती है कि जिस तरह चन्द्रमा को दीर्घायु और कांतिमान होने का वर मिला, उसी तरह पति भी लंबी आयु और स्वस्थ जीवन प्राप्त करें। एक चांद देखने के बजाय छलनी के हज़ार छिद्रों में से कई चांद देखकर उतनी ही लंबी आयु पति को प्राप्त हो, इसी कामना से इस त्योहार में छलनी से चंद्रदर्शन किया जाता है।