गुरुदेव की कृपा का फल

गुरुदेव की कृपा का फल

भोपाल (महामीडिया) महर्षि जी ने ‘‘चेतना विज्ञान’’ की रचना की और उनका ये चेतना विज्ञान करोड़ों लोगों ने एक पाठ्यक्रम के रूप में लिया और अपने जीवन के आधार चेतना को विकसित कर ब्रह्मीय चेतना के स्तर तक पहुंचे।
महर्षि जी का सत्संकल्प कि मनुष्य जन्म संहर्ष के लिए नहीं, दु:ख से व्यथित होने के लिए नहीं है, मात्र आनन्द और मोक्ष के लिये हुआ है, इस सिद्धांत पर आधारित कार्यक्रम उन्हें लगातार आगे बढ़ाते ही गये। वेद निर्मित, ज्ञान शक्ति और आनन्द चेतना के सामगर, वेदान्तिक महर्षि वास्तविक ऐतिहासिक अमर जगदगुरू हो गये।
महर्षि जी ने विश्व भर में व्याप्त समस्याओं और संहर्ष की समाप्ति के लिये ‘‘विश्व योजना’’ बनाई जिसके प्रमुख उद्देश्यों में व्यक्ति का पूर्ण विकास करना, प्रशासन की उपलब्धियों को बढ़ाना, शिक्षा के सर्वोच्च आदर्शों को स्थापित करना, समाज में प्रचलित विभिन्न प्रकार के अपराध और अप्रसन्नताकारक व्यवहार को समाप्त करना, पर्यावरण का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करना, व्यक्ति और समाज की अर्थ व्यवस्था को पूर्णता प्रदान करना और व्यक्ति के आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति कराना था। इसके लिये महर्षि जी ने 2000 नये चेतना विज्ञान के शिक्षक तैयार किये और 2000 ‘‘विश्व योजना केन्द्र’’ स्थापित किये। ‘‘ज्ञान युग’’ की स्थापना के लिये महर्षि जी ने विश्व भ्रमण किया और ‘‘महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी’’ प्रथम विश्वविद्यालय की स्थापना स्विटजरलैण्ड में करके फिर अनेक वैदिक, आयुर्वेदिक और प्रबन्धन विश्वविद्यालयों की स्थापना की।
महर्षि जी ने आदर्श समाज की स्थापना के लिये विश्वव्यापनी अभियान चलाया और 106 देशों में ‘‘योगिक उड़ान’’ का अभ्यास करने वाले समूह भेजे। इन देशों के वैज्ञानिकों ने और सरकारों ने यह पाया कि बड़ी संख्या में सामूहिक ध्यान अत्यन्त प्रभावी होता है। किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या का एक प्रतिशत यदि सामूहिक भावातीत ध्यान करे तो सामूहिक चेतना में सतोगुण की अभिवृद्धि होकर रजोेगुणी और तमोगुणी नकारात्मक चेतना का शमन होता है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘‘महर्षि प्रभाव’’ का नाम दिया। 1983 में पहली बार ‘‘टेस्ट ऑफ यूटोपिया’’ असेम्बली के नाम से 7000 योगिक μलायर्स फेयरफील्ड आयोवा, अमेरिका में एकत्र हुए और अनेक सप्ताहों तक सामूहिक भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम और योगिक μलाइंग का अभ्यास किया। तब वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया कि यदि विश्व की जनसंख्या के एक प्रतिशत के वर्गमूल बराबर व्यक्ति एक साथ, एक स्थान और समय पर सामूहिक योगिक उड़ान भरें तो सतोगुण बहुत अधिक बढ़ेगा और सारी नकारात्मकतायें स्वयं ही समाप्त हो जायेंगी। इस अनुभव और प्रयोग के पश्चात् सारे विश्व में अनके विश्व शांति सभायें- द ‘‘वर्ड पीस असैम्बलीस्’’ आयोजित की गई और उनके बहुत उत्तम परिणाम सामने आये।
महर्षि जी ने ‘‘रोग विहीन समाज’’ की स्थापना का न मात्र नारा ही दिया बल्कि आयुर्वेद के शीर्षस्थ विद्वानों, शोधकर्ताओं, वैद्यों के साथ कई वर्षों तक शोध करके महर्षि आयुर्वेद के चिकित्सालयों और औषधि निर्माण शालाओं की स्थापना क। वैदिक स्वास्थ शिक्षा देने को विधान किया। देश-विदेश के अनेक संस्थानों में वैदिक स्वास्थ्य विधान किया। देश-विदेश के अनेक संस्थानों में वैदिक स्वास्थ्य विधान के प्रमाणपत्र व उपाधि पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। मंत्र चिकित्सा पर अनेक शोध कराये गये और अनेक कष्टसाध्य रोगों की त्वरित चिकित्सा आज सारे विश्व में उपलब्ध है। महर्षि जी ने सम्पूर्ण वैदिक बांगमय से चुन-चुनकर जीवनपरक और त्वरित लाभ प्रदाता सिद्धांतों और प्रयोगों के आधार पर ‘‘भूतल पर स्वर्ग निर्माण’’ का कार्यक्रम बनाया और इसे जन सामान्य को उपलब्ध कराय। महर्षि जी ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि व्यक्ति चाहे तो वह अपना वातावरण स्वर्ग जैसा बना सकता है। इसके लिये उसे वैदिक शाश्वत् सिद्धांतों और प्रयोगों को अपने जीवन में अपनाना होगा। व्यक्ति प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सिद्धहस्त होकर स्वयं अपने और दूसरों के जीवन के लिये स्वर्ग का निर्माता हो सकता है। यह विस्तृत अनोखी दुर्लभ विचार शक्ति मात्र महर्षि जी की ही हो सकती थी। महर्षि जी ने वेद को विश्व ब्रह्माण्ड के संचालन का संविधान बतलाया। उन्होंने बताया कि वेद ही वे प्रकृति के विधान-सृष्टि के संविधान हैं जिनसे समूचे विश्व ब्रह्माण्ड का निर्बिघ्न, निरन्तर प्रशासन, अनादि काल से होता आ रहा है और अनन्त काल तक होता जायेगा। इसी सृष्टि के संविधान को आधार बनाकर उन्होंने ‘‘प्रशासन के पूर्ण सिद्धांतों’’ नामक प्रकाशित की और ‘‘राजनीति के सर्वोच्च सिद्धांतों’’ का पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया।


(महर्षि जी के तपोनिष्ट शिष्य)
 

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