माँ शक्ति के प्रसिद्ध शक्तिपीठ 

माँ शक्ति के प्रसिद्ध शक्तिपीठ 

भोपाल (महामीडिया) शारदीय नवरात्रि हिन्दू धर्म के प्रमुख त्‍योहारों में से एक हैं जिसे दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि शनिवार से शुरू हो रही हैं। नवरात्रि की नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। दसवां दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है।
शास्त्रकारों से लेकर ऋषि-मुनियों ने एकमत होकर शारदीय नवरात्रि की महिमा का गुणगान किया है। नवरात्रि के पावन पर्व पर देवता अनुदान-वरदान देने के लिए स्वयं लालायित रहते हैं।
पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि जहां-जहां माता के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित है। नवरात्रों में शक्तिपीठों पर भक्तों का समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए एकत्रित होता है।
माता के मुख्य 9 शक्तिपीठ
कालीघाट मंदिर कोलकाता

कालीघाट मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित देवी काली का प्रसिद्ध मंदिर है। परंपरागत रूप से हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, जहां सती के दाएं पांव की चार अंगुलियां (अंगूठा छोड़कर) गिरी थीं।
कोलापुर महालक्ष्मी मंदिर
यह शक्तिपीठ महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। यहां माता सती का ‘त्रिनेत्र’ गिरा था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। पाँच नदियों के संगम-पंचगंगा नदी तट पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है।
अम्बाजी का मंदिर गुजरात
अंबाजी मंदिर शक्तिपीठों में शामिल सबसे प्रमुख स्थल है क्योंकि यहां माता सती का हृदय गिरा था। इसका उल्लेख "तंत्र चूड़ामणि" में भी मिलता है। यहां कोई भी प्रतिमा नहीं रखी हुई है, बल्कि यहां मौजूद श्री चक्र की पूजा की जाती है। यह मंदिर माता अंबाजी को समर्पित है और गुजरात का सबसे प्रमुख मंदिर है।
नैना देवी मंदिर
नैनादेवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती के नेत्र गिरे थे। लोगों की आस्था है कि यहां पहुंचने वालों की आंखों की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
कामाख्या देवी मंदिर
कामाख्या मंदिर को सबसे पुराना शक्तिपीठ मन जाता है और यह देवी मां कामाख्या को समर्पित है। असम राज्य में स्थित यह मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर है।
हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन
शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के हवन कुंड में माता के सती हो जाने के बाद भगवान भोलेनाथ सती को उठाकर ब्रह्मांड में ले गए थे। ले जाते समय इस स्थान पर माता के दाहिने हाथ की कोहनी और होंठ गिरे थे और इसी कारण से यह स्थान भी एक शक्तिपीठ बन गया है।
ज्वाला देवी मंदिर
ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर है. इसे जोता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वाला निकल रही है जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है।
कालीघाट काली मंदिर
कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यहां माता कालिका के नाम से प्रसिद्ध हुईं। यह पीठ स्थान हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी (सन्यासपूर्व नाम जिया गंगोपाध्याय) ने की थी।
विशालाक्षी शक्तिपीठ
उत्तर प्रदेश के काशी में मणि‍कर्णिक घाट पर माता के दाहिने कान के मणि जड़े हुए कुंडल गिरे थे। विशालाक्षी‍ मणिकर्णी को शक्ति और भैरव को काल भैरव कहते हैं। यहां पर मां दुर्गा विशालाक्षी और मणिकर्णी रूप में लोकप्रिय हैं।
 

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