गणपति जी को दूर्वा इतनी प्रिय क्यों है ?
भोपाल (महामीडिया) गणपति पूजा में दूर्वा के महत्व से सभी परिचित हैं। गणपति पूजा का थाल सजे और उसमें दूर्वा को स्थान ना मिले, यह असंभव है। जिस तरह तुलसी पत्र के बिना श्री हरि विष्णु जी भोग स्वीकार नहीं करते, ठीक उसी तरह गणपति दूर्वा के बिना प्रसन्न नहीं होते।
गणपति जी को दूर्वा इतनी प्रिय क्यों है ?
एक समय की बात है। अनलासुर नामक दैत्य के आतंक से सारा ब्रह्मांड थर्रा रहा था। वह अग्नि दैत्य था। उसके प्रचंड ताप से सारी धरती काली पड़ रही थी। स्वर्ग के समस्त देवगण उस असुर के अग्नि प्रहार से घबराकर इधर-उधर छिपते फिर रहे थे। जब अनलासुर के अत्याचार सारी सीमाएं लांघ गए, तब देवताओं ने ब्रह्मा जी की शरण ली। ब्रह्मा जी ने बताया कि शिव-पार्वती की संतान ही उस असुर का अंत करने में सक्षम है। सभी देवता शिव जी की शरण में पहुंचे। शिव जी ने तुरंत ही गणेश को बुलाया और अनलासुर का वध कर देवताओं का दुख दूर करने की आज्ञा दी।
अनलासुर और गणपति में भयानक युद्ध
पिता जी की आज्ञा पाते ही गणपति अपने मूषक वाहन पर बैठकर चल दिए। इसके बाद अनलासुर और गणपति में भयानक युद्ध हुआ, पर गणपति जितनी बार उसका वध करते, वह वापस प्रज्वलित हो जाता। इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए गणपति जी को एक ही उपाय सूझा। उन्होंने सोचा कि मेरी भूख का अंत नहीं है। मैं हर चीज हजम कर जाता हूं, तो इस दैत्य को भी अपने पेट में ही पहुंचा देता हूं। ऐसा सोचकर गणपति ने अनलासुर को निगल लिया। इस तरह अनलासुर का अंत तो हो गया, पर उसे खाकर गणपति जी के पेट में तीव्र ज्वाला होने लगी। गणपति इस दाह से तड़पने लगे। सभी ऋषि-मुनि उनकी ज्वाला शांत करने के लिए तरह-तरह के उपाय करने लगे। सभी औषधियां और आसव व्यर्थ गए और गणपति जी की तकलीफ बढ़ती चली गई। वे कष्ट में अपनी माता पार्वती को पुकारने लगे। उनकी पुकार हिमालय तक जा पहुंची और माता पार्वती अपने पुत्र की करूण पुकार सुनकर भागी चली आईं। उन्होंने सारा घटनाक्रम सुनकर तुरंत दूर्वा मंगवाई और उसकी 21 गांठ बनाकर गणेश जी को खिला दीं। दूर्वा खाते ही गणेश जी को शांति मिल गई और तब से उनके पूजन में दूर्वा अनिवार्य हो गईं।