देवभूमि हिमाचल के मंडी में पूजे जाते हैं 216 देवता

देवभूमि हिमाचल के मंडी में पूजे जाते हैं 216 देवता

नईदिल्ली [ महामीडिया] अभी तक भक्तों को ही भगवान के दरबार में जाते देखा गया है लेकिन देवभूमि हिमाचल के मंडी जिले में भगवान देवलुओं के साथ (देवता के साथ चलने वाले उनके क्षेत्र के भक्त) मीलों सफर कर भक्तों के बीच पहुंचे हैं। सांस्कृतिक राजधानी के नाम से विख्यात मंडी यानी छोटी काशी में हर साल आयोजित होने वाले प्रदेश के सबसे बड़े देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव का यह नजारा देखने लाखों लोग हर साल मंडी पहुंचते हैं।महाशिवरात्रि पर्व से शुरू हुई यह अनूठी पंरपरा से 18 मार्च तक चलेगी। देव समागम की दूसरी सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि महोत्सव में भाग लेने वाले 216 देवी -देवताओं के देवरथों के साथ देवलु मीलों लंबा सफर देवधुनों पर नाचते गाते पैदल तय करते हैं। हर साल आषाढ़ माह की एक तारीख को यहां विशाल मेला लगता है।देव पशाकोट चौहारघाटी के सर्वमान्य देवता माने जाते हैं। व्यक्तिगत मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए चौहारवासी हमेशा ही देवता की शरण में जाते हैं। प्राचीन परंपरा की गवाह नरोल देवियां राजाओं के समय से चली आ रही परंपरा को आज भी नरोल देवियां निभा रही हैं। छह देवियों में बगलामुखी, मां बूढ़ी भैरवा, काश्मीरी माता, मां धूमावती, बुशाई माता, रूपेश्वरी माता शामिल हैं।सराज के भाटकीधार क्षेत्र के देव विष्णु मतलोड़ा को भगवान विष्णु के प्रतिरूप में पूजा जाता है। देवता का इतिहास महाभारत कालीन संस्कृति से जुड़ा है। किंवदंति है कि महाभारत युद्ध के बाद कुरुक्षेत्र से देव विष्णु मतलोड़ा द्रंग, मंडी, घासनू होते हुए भाटकीधार पहुंचे थे। बालक रूप में पहुंचे देव विष्णु मतलोड़ा का सामना यहां दैत्य से हुआ। एक महिला की सहायता से देव विष्णु मतलोड़ा ने दैत्य का संहार कर स्थानीय लोगों को उसके आतंक से छुटकारा दिलाया था।
 

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