श्रीराम की बसाई लक्ष्मण नगरी में जेठ महीने में पूजे जाते हैं भक्त हनुमान

श्रीराम की बसाई लक्ष्मण नगरी में जेठ महीने में पूजे जाते हैं भक्त हनुमान

लक्ष्मणपुरी [ महामीडिया ]अयोध्या नरेश राम ने अपने अनुज भाई लक्ष्मण के लिए लक्ष्मणपुरी का निर्माण करवाया था। लक्ष्मण के इस नगरी में आने के साक्ष्य बुद्धेश्वर मंदिर में भी मिलते हैं। तुलसी ने भी इस नगरी में खास समय बिता कर अपना लेखन कार्य किया है। दूसरी ओर इस नगरी में जेठ महीने में  राम भक्त हनुमान के पूजने की अपनी अनोखी और समृद्ध परंपरा है।बड़े मंगल की परंपरा लक्ष्मण की नगरी लखनऊ से ही शुरू हुई है। दरअसल नवाब सआदत अली की मां छतर कुंवर ने अपने बेट के स्वास्थ्य के लिए अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर में दुआ मांगी थी इसलिए उस मंदिर में जेठ महीने में मेले और पूजा की परंपरा शुरू हुई जो आज तक जारी है। लोगों की मान्यता बढ़ती गई और आज देश विदेश तक जेठ का बड़ा मंगल मनाया जाने लगा है। उस ऐतिहासिक घटना की गवाही  देता चांद आज भी मंदिर के ऊपर लगा है। वहां खासतौरसे भुने गेहूं का प्रसाद गुड़धनिया बाटने की परंपरा भी जीवित है।बात अलीगंज के नए हनुमान मन्दिर की करें तो वह करीब ढाई सौ वर्ष पुराना है। अलीगंज का नया हनुमान मन्दिर को बेगम के सिपहसालार जठमल ने बनवाया था। यहां पर हुई खुदाई में निकली मूर्तियों को हाथी पर रखकर इमामबाड़े के पास नए मन्दिर में स्थापित करने के लिए ले जाया जा रहा था। लेकिन हाथी यही पर रूक गया। काफी कोशिश की लेकिन हाथी उठा नही। बाद में साधू संतों ने बेगम को बताया कि गोमतीपार का क्षेत्र लक्ष्मण जी का है। यहां से हनुमान जी जाना नही चाहते है। फिर मूर्तियों को यही पर स्थापित किया गया। बाद में महमूदाबाद के राजा ने मन्दिर के लिए जमीन दी जहां पर आज तक मेला लगता आ रहा है।1960 की बाढ़ में बाबा नीम करौरी आश्रम स्थित हनुमान मन्दिर मे बजरंगबली की मूर्ति छोड़कर बाकी सब बह गए। जिसे भूमि अधिग्रहीत कर दोबारा स्थापित कराया गया। जिसमें बाबा की दूरदर्शिता का पुट नजर आता है। बाबा ने मूर्ति का मुख्य सड़क की ओर कराया जिससे आने वाले भक्तों को आसानी से दर्शन हो सके।मेडिकल कालेज चैराहा के पास स्थित छाछी कुआ हनुमान मन्दिर में 1884 के आस पास एक बारात इस मन्दिर में रुकी थी बारातियों के जलपान के लिए जब महंत के शिष्य ने कुएं में बाल्टी डाली तो पानी की जगह छाछ निकली। जिसके बाद से इस मन्दिर का नाम छाछी कुआ पड़ गया। इसी कुएं से एक बजरंगबली की प्रतिमा भी निकली थी। मन्दिर की स्थापना महंत बाबा परमेश्वर दास ने कराई थी।
 

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