पूर्वजों की मृत्यु तिथि अज्ञात हो तो अमावस्या पर करना चाहिए  श्राद्ध और तर्पण

पूर्वजों की मृत्यु तिथि अज्ञात हो तो अमावस्या पर करना चाहिए  श्राद्ध और तर्पण

भोपाल [ महामीडिया] साल में एक बार मृत पूर्वजों को आदरांजलि देने के लिए मनाया जाने वाला 16 दिवसीय पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू हो रहा है। श्राद्ध पर्व पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर मनाया जाता है। यदि किसी पूर्वज की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो अंतिम दिन पितृ मोक्ष अमावस्या पर उनके नाम अर्पण-तर्पण करने की परंपरा निभाई जाती है, इस बार सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या छह अक्टूबर को पड़ रही है। इसे छत्तीसगढ़ में पितरखेदा भी कहा जाता है। इस दिन समता कालोनी स्थित गायत्री शक्तिपीठ में सामूहिक अर्पण-तर्पण का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें कोरोना के मृतकों का सामूहिक श्राद्ध होगा।ज्योतिषाचार्य के अनुसार, जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर होती है, उनके परिजन पूर्णिमा तिथि पर श्राद्ध कर सकते हैं। इसलिए पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक 16 दिवसीय पितृ पक्ष मनाया जाता है। इस बार पूर्णिमा तिथि 20 सितंबर को पड़ रही है। पितृ पक्ष में कुशा उंगली में धारणकर तिल मिले जल का अर्पण-तर्पण करना चाहिए। साथ ही पितरों के निमित्त भोजन बनवाकर ब्राह्मण को भोजन करवाएं। कौआ, गोमाता, कुत्ता, चींटी के लिए अलग से पूड़ी निकालें। पूर्वजों का श्राद्ध करने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृ दोष समाप्त होता है।
प्रमुख तिथियां
पूर्णिमा - 20 सितंबर
प्रतिपदा - 21 सितंबर
द्वितीया - 22 सितंबर
तृतीया - 23 सितंबर
चतुर्थी - 24 सितंबर
पंचमी - 25 सितंबर
षष्ठी - 27 सितंबर
सप्तमी - 28 सितंबर
अष्टमी - 29 सितंबर
नवमी - 30 सितंबर
दशमी - 01 अक्टूबर
एकादशी - 02 अक्टूबर
द्वादशी - 03 अक्टूबर संन्यासी श्राद्ध
त्रयोदशी - 04 अक्टूबर
चतुर्दशी - 05 अक्टूबर
मोक्ष अमावस्या - 06 अक्टूबर

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