कार्तिक मास का प्रताप 

कार्तिक मास का प्रताप 

भोपाल   [ महामीडिया] कार्तिक मास विख्यात है। कार्तिक मास दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रवहमान मास है। पूर्ण कार्तिक मास व्रत पर्वों का मास कहा जाता है जिसमें त्योहारों पर दीपक से संबंधित पूजन किया जाता है। हर मास का यूं तो अलग अलग महत्व होता है मगर व्रत एवं तप की दृष्टि से कार्तिक की बहुत महिमा एवं उपयोगिता बताई गई है- मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानाम मधुसूदन:। तीर्थं नारायणाख्यम हि त्रितयम दुर्लभम कलौ।। अर्थात भगवान विष्णु एवं विष्णु तीर्थ के समान हैं। कार्तिक मास को श्रेष्ठ तथा दुर्लभ कहा गया है। कार्तिक मास बहुत ही कल्याणकारी मास माना जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए श्रृंगार करती हैं तथा भगवान रजनीश से पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना पूजा तथा दीपक के माध्यम से उनके शरीर में आने वाले दिनों में पर्याप्त ऊर्जा बनी रहे इस कामना से करवा चौथ का व्रत करती है।कार्तिक मास में सूर्य और चंद्रमा पृथ्वी से दूर चले जाते हैं। इस संसार में तीन प्रकार की अग्नि हैं पहली सूर्य जिससे हम ऊर्जा प्राप्त करते हैं दूसरी सूर्य से चमकने वाला चंद्रमा तथा तीसरी अग्नि है लौकिक अग्नि अर्थात दीपक की अग्रि , हवन की अग्नि। इस पृथ्वी पर जलने वाली अग्नि को लौकिक अग्नि कहते हैं। कार्तिक मास में यह दोनों अग्नि सूर्य तथा चंद्रमा की अग्नि पृथ्वी से अत्यंत दूर हो जाती है। ज्योतिष शास्त्रानुसार कार्तिक मास में सूर्य नीच के हो जाते हैं जिससे पृथ्वी पर ऊर्जा का स्रोत कम हो जाता है तथा पर्याप्त मात्रा में पृथ्वी पर ऊर्जा का स्रोत प्राप्त नहीं होता है। इससे पुरुष संप्रदाय में ह्रदय रोग शरीर में विकार इत्यादि होने लगते हैं उसके समूल नष्ट के लिए स्त्रियां कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को दीपक के माध्यम से चंद्रमा से अग्नि को ग्रहण कर अपने पति को प्रेक्षित करती हैं और प्रार्थना करती है कि भगवान रजनीश उनके पति की आयु में वृद्धि करें तथा उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहे।कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को केवल चंद्र देवता की ही पूजा नहीं होती अपितु शिव पार्वती और स्वामी कार्तिकेय को भी पूजा जाता है। कहते हैं शिव पार्वती की पूजा का विधान इसलिए किया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त किया तथा अपने अखंड सौभाग्य की रक्षा की। वैसी ही रक्षा प्रत्येक स्त्री के पति की हो और उनका अखंड सौभाग्य बना रहे। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की व्रत विधि हमें कृष्ण पक्ष की तृतीया की रात्रि को निराहार रहना चाहिए तथा यह व्रत तृतीया की पूर्ण रात्रि चतुर्थी के पूरे दिन तथा रात्रि को चंद्रमा की पूजन कर पति के हाथ से जल भोजन लेना चाहिए।

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