जानें : मंदिर में दर्शन और पूजा के नौ चरण

जानें : मंदिर में दर्शन और पूजा के नौ चरण

भोपाल [ महामीडिया ]बहुत से लोग मंदिर जाते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम रहता है कि मंदिर में प्रवेश के क्या नियम है और मंदिर से बाहर निकलते वक्त क्यों कुछ देर के लिए सीढ़ियों पर बैठा जाता है। आओ जानते हैं प्रवेश से लेकर बाहर निकलने तक की प्रक्रिया के सामान्य आम 9 चरण-
1.मंदिर के मुख्य द्वारा पर पहुंचते ही सर्वप्रथम नमस्कार करके जूते-चप्पल उचित स्थान पर उतारे जाते हैं। फिर मंदिर की सीढ़ियों को नमन कर मंदिर में प्रदेश करते हैं। यदि मंदिर प्रांगण में ही जूते-चप्पल रखने का स्थान है तो पहले ही नमन कर लिया जाता है।
2.जूते-चप्पल उतारने के बाद मंदिर प्रांगण में स्थित जल स्थान पर हाथ पैर धोने के बाद संक्षिप्त आचमन किया जाता है। अर्थात मुंह धोना और चारों ओर पानी के छींटे डालकर कुल्ला करना और अंत में दो बूंद पानी पीना। हालांकि आचमन की प्रक्रिया तो लंबी है, लेकिन शरीर और इंद्रियों को जल से शुद्ध करने के बाद आचमन कर लें। इस शुद्ध करने की प्रक्रिया को ही आचमन कहते हैं।
3.उक्त प्रक्रिया करने के बाद कुछ मंदिरों में सिर को ढंक लिया जाता है, रूमाल या अन्य किसी कपड़े से। महिलाएं सिर पर चूनरी या पल्लू ओढ़ लेती हैं। फिर हाथ जोड़ते हुए मंदिर में प्रवेश किया जाता है। ध्यान रहे की कैप, पगड़ी या हैट लगाकर मंदिर में प्रवेश नहीं करते हैं। कहते हैं कि दुर्गा, कालिका और हनुमान मंदिर में सिर ढंककर जाते हैं। महिलाओं को सभी मंदिरों में सिर ढंककर ही जाना चाहिए।
4.मंदिर में प्रवेश करने के बाद मूर्ति के समक्ष दाएं या बाएं खड़े होकर नमन हुआ जाता है। एकदम मूर्ति के सामने खड़े नहीं होते हैं। नमन होने के बाद बैठकर प्रार्थना, मंत्र जप, दीप प्रज्वलन, अगरबत्ती जलाना, हार-फूल या प्रसाद चढ़ाना आदि कर्म किया जाता है।
5.फिर मंदिर की परिक्रमा की जाती है। किस देवता की कितनी प्रदक्षिणा करनी चाहिए, इस संदर्भ में 'कर्म लोचन' नामक ग्रंथ में लिखा गया है कि- ''एका चण्ड्या रवे: सप्त तिस्र: कार्या विनायके। हरेश्चतस्र: कर्तव्या: शिवस्यार्धप्रदक्षिणा।'' अर्थात दुर्गाजी की एक, सूर्य की सात, गणेशजी की तीन, विष्णु भगवान की चार एवं शिवजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिए। हनुमानजी की तीन परिक्रमा की जाती है।
6.परिक्रमा करने के बाद कुछ लोग एक स्थान पर बैठकर पाठ करते है। जैसे हनुमान चालीसा का पाठ, दुर्गा चालीसा का पाठ या अन्य किसी तरह का स्त्रोत पढ़ते हैं। पूजा पाठ के बाद जो भी मनोकामना होती है उसकी प्रार्थना की जाती है।
7.इसके बाद मंदिर से बाहर निकलते वक्त कुछ कदम उल्टे चलते हुए हाथ जोड़ते हुए धन्यवाद करते हुए, क्षमा मांगते हुए निकला जाता है।
8.इसके बाद मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ समय के लिए बैठा जाता है। यह प्रार्थना करने के लिए कि हे प्रभु हम जब भी इस संसार को छोड़कर जाएं तो किसी भी प्रकार की कठिनाइयां ना हो। सरलता से शरीर छूट जाए और आप हमें अपनी शरण में लें।
9.इसके बाद खड़े होकर एक बार पुन: मंदिर की ओर या मूर्ति की ओर मुख करके नमन किया जाता है और अपने ईष्टदेव का नाम जपते हुए मंदिर प्रांगण में जूते चप्पलों के स्थान पर जाया जाता है।

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