महर्षि जी का वैदिक विश्व प्रशासन

महर्षि जी का वैदिक विश्व प्रशासन

भोपाल (महामीडिया) महर्षि जी ने वैदिक विश्व प्रशासन की स्थापना कर सम्पूर्ण विश्व को 12 समय क्षेत्रों में विभाजित किया । इन समय क्षेत्रों को 12 राशियों से और भारतीय द्वादश ज्यातिर्लिगों से जोड़कर वैदिक विश्व प्रशासन संचालन की व्यवस्था की। महर्षि जी ने प्रत्येक ज्यातिर्लिग के साथ 16-16 देशों को जोड़कर राष्ट्रकुल के सभी 192 सदस्य राष्ट्रों के लिये यज्ञानुष्ठान और ग्रहशांति की व्यवस्था की है। भारतवर्ष के लिये प्रत्येक ज्योतिर्लिग से 48-48 नगरों को जोड़कर 576 नगरों के लिये ग्रह शांति की व्यवस्था की गई है। महर्षि जी ने हालैण्ड में अगस्त 1997 में ब्रह्मचारी गिरीश को महर्षि वैदिक विश्व प्रशासन का प्रधानमंत्री नियुक्त किया।प्रकृति के संविधान वेद के द्वारा हर व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान देने के उद्देश्य से महर्षि जी ने वैदिक शिक्षा, वैदिक स्वास्थ्य, वैदिक प्रशासन, वैदिक अर्थशास्त्र, वैदिक वास्तुकला, वैदिक सुरक्षा तथा वैदिक कृषि के क्षेत्रों में ज्ञान उपलब्ध कराने और प्रायोगिक कार्यक्रमों को लागू करने का विधान किया। पूर्ण ज्ञान हर व्यक्ति तक और विश्व के कौने-कौने में पहुंचाने के लिये आठ विभिन्न सेटेलाइट चैनल्स् के द्वारा ‘‘महर्षि ओपन यूनिवर्सिटी’’ के माध्यम से पाठ्यक्रम उपलब्ध कराये। ‘‘महर्षि वेदा विजन’’ महर्षि चैनल पर भी महर्षि जी ने वैदिक कार्यक्रमों और पाठ्यक्रमों के प्रसारण का प्रबन्ध किया।महर्षि जी ने प्राचीन स्थापत्यवेद-वास्तुकला की विद्या परमार्जित करके सारे विश्व को उपलब्ध करा दी। शोधकर्ताओं ने पाया कि विश्व में आधे से अधिक समस्यायें वास्तु के नियमों का उल्लंघन किये जाने और अनुचित ढंग से निर्मित भवनों, नगरों के कारण है। महर्षि जी ने स्थापत्यवेद-वास्तु विद्या के अनेक पाठ्यक्रम बनवाये और अपने सभी केन्द्रों और शैक्षणिक संस्थानों में इसे उपलब्ध करवाया। साथ ही सारे विश्व में वास्तु परामर्श देने की व्यवस्था भी की।महर्षि जी ने ज्योतिष विद्या की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्रतिस्थापित की। सैकड़ों ज्योतिषी विभिन्न देशों में भ्रमण कर परामर्श देते रहे और उनके फलादेश के आधार पर व्यक्तियों और राष्ट्रों के लिये ग्रहशान्ति, यज्ञों और अनुष्ठानों की स्थायी व्यवस्था कर दी गई ।गन्धर्ववेद विद्या जो पाश्चत्य संगीत से प्रभावित और दूषित होने लगी थी और केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत के नाम से रह गई थी, महर्षि जी ने शुद्धिकरण करके इसे अपने मूल रूप गंधर्ववेद में प्रतिष्ठित किया। ‘‘महर्षि विश्व शांति संगीतोत्सवों’’ के नाम से अब तक विश्व में 3000 से ऊपर संगीत सभायें आयोजित हो चुकी हैं जिसमें भारत और अन्य देशों में फैले सैकड़ों वरिष्ठ और उदीयमान गायक और वादक भाग ले चुके हैं। सिद्धांत और प्रायोगिक प्रशिक्षण के अनेक आडियो और वीडियो पाठ्यक्रम भी बनाये गये जो महर्षि जी की सभी शैक्षणिक संस्थाओं में उपलब्ध हैं। महर्षि गन्धर्ववेद की गायन और विभिन्न वाद्यों की आडियो सीडीज् भी लाखों की संख्या में अब तक वितरित की जा चुकी हैं।महर्षि जी ने ‘‘पारम्परिक राजाओं के विश्व संघ’’ की भी स्थापना करवाई जिसका उद्देश्य विभिन्न देशों की सांस्कृतिक विरासत को अच्छुण बनाये रखना और उसका संवर्धन करना है। सात महाद्वीपों के अनेक देशों के हजारों पारम्परिक और आदिवासी राजा इस संघ से जुड़कर अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में अपनी प्रजा को महर्षि जी के वेद विज्ञान का ज्ञान उपलब्ध करा रहे हैं और बड़ी संख्या में भावातीत ध्यान और सिद्धि कार्यक्रम के साधक प्रशिक्षित हो रहे हैं जिनके अभ्यास से विश्व चेतना सतोगुणी होगी।

-ब्रह्मचारी गिरीश 
 

सम्बंधित ख़बरें