शिव के जलाभिषेक से मिलती हे सकारात्मक ऊर्जा

शिव के जलाभिषेक से मिलती हे सकारात्मक ऊर्जा

भोपाल [ महामीडिया ]भगवान भोलेनाथ को प्रकृति से बेहद लगाव है। इसलिए उनका निवास भी प्रकृति की सुरम्य छटा बिखेरने वाले कैलाश पर्वत पर है। धरती को पापमुक्त करने वाली मोक्षदायिनी गंगा उनकी जटाओं में विराजमान है। सर्प उनका श्रंगार है,। मृगछाल के उनके वस्त्र है। बिल्वपत्र उनको प्रिय है, भांग, धतूरे का भोलेनाथ भोग लगाते हैं औऱ इन सबसे बढ़कर जलाभिषेक से वो प्रसन्न और त्रप्त होते हैं।मान्यता है कि शिवलिंग पर जल की धारा समर्पित करने से भक्तों का कल्याण हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पंचतत्व में जल को प्रधान तत्व मानते हुए शिवाभिषेक का बहुत महत्व बतलाया गया है। शास्त्रों में जल में विष्णु का वास माना गया है, जबकि शिव पुराण में शिव को साक्षात जल माना गया है। जल को नार भी कहा गया है। इसलिए भगवान लक्षामीनारायण ने कहा है कि जल से पृथ्वी की गरमी दूर होती है इसलिए जो शिवभक्त शिवलिंग पर जलधारा अर्पित करता है उसके सभा दैहिक, दैविक और भौतिक तापों का नाश हो जाता है।यह भी मान्यता है कि शिव जलाभिषेक से मानव के अंदर संग्रहित नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और उसके शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है। आध्यात्मिक कारण यह भी है कि मस्तिष्क के केंद्र यानी इंसान के मस्तक के मध्य में आग्नेय चक्र होता है, जो पिंगला और इड़ा नाडियों का मिलन स्थल है। इससे मानव की सोचने-समझने की शक्ति का संचालन होता है। इसको शिव स्थान कहा जाता है। इसलिए कहा जाता है कि मस्तिष्क शांत रहे और उसमें शीतलता बनी रहे इसलिए शिव को जल समर्पित किया जाता है।इस संबंध में वैज्ञानिकों का कहना है कि सभी ज्योतिर्लिंगों में रेडिएशन पाया जाता है, जो परमाणु संयंत्र की तरह रेडियो एक्टिव ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं। इसलिए ऊर्जा को शांत रखने के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा है। जलाभिषेक का यही जल नदियों में मिलकर औषधिय रूप ले लेता है।

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