नियमों से किए गए श्राद्ध से ही पितरों को मोक्ष मिलता है 

नियमों से किए गए श्राद्ध से ही पितरों को मोक्ष मिलता है 

भोपाल (महामीडिया) पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व भाद्रपद माह की पूर्णिमा से शुरू हो चुका है. इसे महापर्व इसलिए बोला जाता है क्योंकि नवदुर्गा महोत्सव नौ दिनों का होता है, दशहरा पर्व दस दिन का होता है, लेकिन पूर्वजों के लिए किया जाने वाला पितृपक्ष सोलह दिनों तक चलता है.
कैसे करें श्राद्ध
पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध सामान्यत: दोपहर 12 बजे के लगभग करना ठीक माना जाता है. इसे किसी पवित्र सरोवर, नदी या फिर अपने घर पर भी किया जा सकता है. परंपरा अनुसार, अपने पितरों के आवाहन के लिए भात, काले तिल व घी का मिश्रण करके पिंड दान व तर्पण किया जाता है. इसके पश्चात भगवान विष्णु और यमराज की पूजा-अर्चना के साथ-साथ अपने पितरों की पूजा भी की जाती है.
हिंदू धर्म में अपनी तीन पीढ़ी पूर्व तक के पूर्वजों की पूजा करने की मान्यता है. ब्राह्मण को घर पर आमंत्रित कर सम्मानपूर्वक उनके द्वारा पूजा करवाने के उपरांत अपने पूर्वजों के लिए बनाया गया विशेष भोजन समर्पित किया जाता है. फिर आमंत्रित ब्राह्मण को भोजन करवाया जाता है. ब्राह्मण को दक्षिणा, फल, मिठाई और वस्त्र देकर प्रसन्न किया जाता है और चरण स्पर्श कर सभी परिवारजन उनसे आशीष लेते हैं.
अवश्य करें पिंड दान
पित पृक्ष में पिंड दान अवश्य करना चाहिए ताकि देवों और पितरों का आशीर्वाद मिल सके. अपने पितरों का पसंदीदा भोजन बनाना अच्छा माना जाता है. सामान्यत: पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए कद्दू की सब्जी, दाल-भात, पूरी और खीर बनाना शुभ माना जाता है. पूजा के बाद पूरी और खीर सहित अन्य सब्जियां एक थाली में सजाकर गाय, कुत्ता, कौवा और चीटियों को देना अति आवश्यक माना जाता है.
कहा जाता है कि कौवे व अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितरों को सही मायने में भोजन प्राप्त होता है क्योंकि पक्षियों को पितरों का दूत व विशेष रूप से कौवे को उनका प्रतिनिधि माना जाता है. पितृ पक्ष में अपशब्द बोलना, ईर्ष्या करना, क्रोध करना बुरा माना जाता है. इस दौरान घर पर लहसुन, प्याज, नॉन-वेज और किसी भी तरह के नशे का सेवन वर्जित माना जाता है. पीपल के पेड़ के नीचे शु्द्ध घी का दीप जलाकर गंगा जल, दूध, घी, अक्षत व पुष्प चढ़ाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
पूर्वजों के नाम से करें नेक कार्य
घर में गीता का पाठ करना भी इस अवधि में काफी अच्छा माना गया है. यह सब करके आप अपने पितरों का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. यदि इस अवसर पर अपने पूर्वजों के सम्मान में उनके नाम से प्याऊ, स्कूल, धर्मशाला आदि के निर्माण में सहयोग करें तो माना जाता है कि आपके पूर्वज आप पर अति कृपा बनाए रखते हैं.
क्षमता के अनुसार कर सकते हैं श्राद्ध
यह महत्वपूर्ण है कि पितरों को धन से नहीं बल्कि भावना से प्रसन्न करना चाहिए. विष्णु पुराण में भी कहा गया है कि निर्धन व्यक्ति जो नाना प्रकार के पकवान बनाकर अपने पितरों को विशेष भोजन अर्पित करने में सक्षम नहीं हैं, वे यदि मोटा अनाज या आटा-चावल और यदि संभव हो तो कोई साग-सब्जी व फल भी पितरों को पूरी आस्था से किसी ब्राह्मण को दान करता है तो उसे अपने पूर्वजों का पूरा आशीर्वाद मिल जाता है. यदि मोटा अनाज और फल देना भी मुश्किल हो तो वह सिर्फ अपने पितरों को तिल मिश्रित जल को तीन उंगुलियों में लेकर तर्पण कर सकता है. ऐसा करने से भी उसकी पूरी प्रक्रिया होना माना जाता है.
श्राद्ध और तर्पण के दौरान ब्राह्मण को तीन बार जल में तिल मिलाकर दान देने व बाद में गाय को घास खिलाकर सूर्य देवता से प्रार्थना करते हुए कहना चाहिए कि मैंने अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो किया उससे प्रसन्न होकर मेरे पितरों को मोक्ष दें. ऐसा करने से आपके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को श्राद्ध का फल प्राप्त होता है. यदि माता-पिता, दादा-दादी इत्यादि किसी के निधन की सही तिथि का ज्ञान नहीं हो तो इस पर्व के अंतिम दिन यानी अमावस्या पर उनका श्राद्ध करने से पूर्ण फल मिल जाता है.
 

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