शारदीय नवरात्रि महापर्व की परंपरा एवं महत्व 

शारदीय नवरात्रि महापर्व की परंपरा एवं महत्व 

मैहर [ महामीडिया] शारदीय नवरात्रि देवी समर्पित एक हिन्दू त्योहार है, जो शरद ऋतु में मनाया जाता है। हिन्दू परम्परा में नवरात्रि का त्योहार, वर्ष में दो बार प्रमुख रूप से मनाया जाता है ।  चैत्र मास में वासन्तिक नवरात्रि तथा आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि। शारदीय नवरात्रि के उपरान्त दशमी तिथि को विजयदशमी (दशहरा) पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि का महात्म्य सर्वोपरि इसलिये है कि इसी समय देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर और आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी और उनकी पुकार सुनकर देवी माँ का आविर्भाव हुआ। उनके प्राकट्य से दैत्यों के सँहार करने पर देवी माँ की स्तुति देवताओं ने की थी। उसी पावन स्मृति में शारदीय नवरात्रि का महोत्सव मनाया जाता है।शारदीय नवरात्रि का व्रत श्रीरामचन्द्र जी ने रावण पर विजय प्राप्त करने के लिये किया था। उन्होंने पूर्ण विधि-विधान से महाशक्ति की पूजा उपासना की थी। महाभारत काल में पाण्डवों ने श्रीकृष्णजी के परामर्श पर शारदीय नवरात्रि की पावन बेला पर माँ दुर्गा महाशक्ति की उपासना विजय के लिये की थी। तब से तथा उसके पूर्व से शारदीय नवव्रत उपासना का क्रम चला आ रहा है। यह नवरात्रि इन्हीं कारणों से बड़ी नवरात्रि, महत्त्वपूर्ण एवं वार्षिकी नवरात्रि के रूप में मनायी जाती है। बंगाल प्रांत में इसी नवरात्रि को दुर्गापूजा का सबसे बड़ा महोत्सव होता है। बंगाल में सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी की  पूजा का विशेष महत्त्व माना जाता है । साधकों के लिए नवरात्रि के त्यौहार की अनुपम महिमा है। ‘शिवरात्रि’ साधक के लिए साधना में प्रवेश करने का काल है तो ‘नवरात्रि’ उत्सवपूर्ण नवीनीकरण के अवसर की नौ रात्रियां हैं। नवरात्रि व्रत का मूल उद्देश्य है इंद्रियों का संयम और आध्यात्मिक शक्ति का संचय। वस्तुत: नवरात्र अंत:शुद्धि का महापर्व है। आज वातावरण में चारों तरफ विचारों का प्रदूषण है। ऐसी स्थिति में नवरात्र का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। अपने भीतर की ऊर्जा जगाना ही देवी उपासना का मुख्य प्रयोजन है। दुर्गा पूजा और नवरात्र मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं। सर्दी और गर्मी की ऋतुओं का मिलन काल आश्विन में जिन दिनों आता है, वे नवरात्रि कहलाते हैं। उन दिनों शरीर, मन और प्रकृति के विभिन्न घटकों में विशेष रूप से उल्लास भरा रहता है। वातावरण में विशिष्टता व्याप्त रहती है। शरीर दबे हुए रोगों को निकालने का प्रयास करता है। इसीलिए इन दिनों रोग बढ़ जाते हैं। इस अवसर को शरीर शोधन के लिए विशेष उपयोगी मानता है। चैत्र नवरात्र में वसंत होता है। प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है। वनस्पतियां नवीन पल्लव धारण करती हैं। प्रकृति का उल्लास अपना प्रभाव समूचे वातावरण पर डालता है। जीवधारियों के मन विशेष प्रकार की मादकता से भर जाते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से मनीषियों ने इन दिनों आत्मा के ऋतुमति होने का आलंकारिक संकेत किया है। उनके अनुसार, इन दिनों वह अपने प्रियतम परमात्मा से मिलने के लिए विशेष रूप से आतुर होती है। नौ दिन का व्रत-उपवास प्राकृतिक उपचार के समतुल्य माना जा सकता है। इसमें प्रायश्चित के निष्कासन और पवित्रता की अवधारणा दोनों भाव हैं।नवरात्रि के समय प्रकृति में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है, जिसको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। व्रत में हम कई चीजों से परहेज करते हैं और कई वस्तुओं को अपनाते हैं।पाचन क्रिया की खराबी से ही शारीरिक रोग होते हैं। क्योंकि हमारे खाने के साथ जहरीले तत्व भी हमारे शरीर में जाते हैं।  व्रत से पाचन प्रणाली ठीक होती है। व्रत उपवास का प्रयोजन भी यह है कि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केंद्रित कर सकें।कोई भी व्यक्ति व्रत-उपवास एक शुद्ध भावना के साथ रखता है। उस समय हमारी सोच सकारात्मक रहती है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, जिससे हम अपने भीतर नई ऊर्जा महसूस करते हैं। इस समय प्रकृति अपना स्वरूप बदलती है। वातावरण में एक अलग-सी आभा देखने को मिलती है।  संपूर्ण सृष्टि में एक नई ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने के लिए हमें व्रतों का संयम-नियम बहुत लाभ पहुंचाता है। नवरात्रि में कृषि-संस्कृति को भी सम्मान दिया गया है। मान्यता है कि सृष्टि की शुरुआत में पहली फसल जौ ही थी। इसलिए इसे हम प्रकृति (मां शक्ति) को समर्पित करते हैं। शारदीय नवरात्रि धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है। इन्हीं नौ दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती है और धरती को उनका मायका कहा जाता है । 


 

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