महर्षि सांदीपनि आश्रम में सीखी थी भगवान श्रीकृष्ण ने 64 विद्याएं
उज्जैन (महामीडिया) भगवान श्रीकृष्ण ने मात्र 11 वर्ष 7 दिन की उम्र में 64 विद्या और 16 कलाओं का ज्ञान प्राप्त किया था। मामा कंस का वध करने के बाद बाबा महाकालेश्वर की नगरी अवंतिका में आने के बाद वे 64 दिनों तक यहां रूके थे। इन 64 दिनों में ही उन्होंने यह शिक्षा प्राप्त की थी।
5266 वर्ष पुराना है आश्रम
यह आश्रम 5 हजार 266 वर्ष प्राचीन है। पूर्व द्वार युग में इसकी शुरूआत हुई थी। आश्रम में गुरु सांदीपनि की प्रतिमा के समक्ष चरण पादुकाओं के दर्शन होते हैं। यहीं से भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी।
हाथों में है स्लेट, कलम
अन्य मंदिरों की अपेक्षा आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण की बैठी हुई प्रतिमा विराजमान है। यहां भगवान कृष्ण बाल रूप में हैं। वह एक विद्यार्थी की मुद्रा में हाथों में स्लेट व कलम दिए हुए हैं।
मंत्र के साथ हुआ था विद्यारांभ
महर्षि सांदीपनि वंशज के मुख्य पुजारी पंडित रूपम व्यास के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की स्लेट पर लिखे हुए तीन मंत्रों के साथ ही उनके विद्या संस्कार का आरंभ हुआ था।
हरि से हर का हुआ मिलन
हरि यानि कृष्ण और हर यानी भोलेनाथ। भगवान श्रीकृष्ण जब सांदीपनि आश्रम में विद्या प्राप्त करने के लिए पधारे थे तब भगवान शिव से उनकी भेंट हुई थी। भगवान उनकी बाल लीलाओं के दर्शन करने इस आश्रम में आए थे। इसी दुर्लभ क्षण को हरिहर के मिलन के रूप जाना जाता है।
प्राचीन सर्वेश्वर महादेव
गुरु सांदीपनि ने अपनी कठिन तपस्या से बिल्वपत्र के माध्यम से शिवलिंग प्रकट किया था। इन्हें ही सर्वेश्वर महादेव के नाम से जानते हैं। गोमती कुंड के समीप ही इस मंदिर में भगवान शिव की दुर्लभ प्रतिमा है। यहां पढऩे वाले बच्चों का पढ़ाई में मन लगा रहे इसलिए उन्हें पाती लिखकर दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बड़े होकर साक्षात्कार के लिए जाने पर यह पाती साथ में रखने से सफलता अवश्य मिलती है।
पिंडेश्वर महादेव में नंदी भी हैं खड़े रूप में
इस आश्रम भगवान शिवजी का एक मंदिर भी है। जिसे पिंडेश्वर महादेव कहा जाता है। जब भगवान शिव प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने यहां पधारे थे। तो इन दोनों गुरु और गोविंद के सम्मान में नंदी महाराज खड़े हो गए। इसी कारण यहां भक्तों को नंदीजी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन होते हैं।
इसलिए नाम पड़ा अंकपात
स्लेट पर लिख हुए अंक को मिटाने के लिए भगवान कृष्ण जिस गोमती कुंड में जाते थे। वह कुंड आज भी यहां स्थापित है। अंकों को धोने के कारण है कि आश्रम के सामने वाले मार्ग को अंकपात के नाम से जाना जाता है।