तीज-त्यौहारः आज भगवान दत्तात्रेय जयंती है

तीज-त्यौहारः आज भगवान दत्तात्रेय जयंती है

भोपाल (महामीडिया) हर साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा​ तिथि को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है. इसे दत्त जयंती के नाम से भी जाना जाता है. आज भगवान दत्तात्रेय जयंती है. भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है. माना जाता है कि दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी. दत्तात्रेय के नाम पर ही दत्त संप्रदाय का उदय हुआ.
वैसे तो दत्त जयंती का पूरे देश में काफी महत्व है, लेकिन दक्षिण भारत में इसकी महत्ता कहीं ज्यादा है क्योंकि वहां लगभग सभी लोग दत्त संप्रदाय से जुड़े हुए हैं. माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि, वैभव आदि प्राप्त होता है. दत्तात्रेय भगवान को लेकर कहा जाता है कि यदि संकट की घड़ी में इनके भक्त सच्चे दिल से इन्हें याद करें तो ये उनकी मदद के लिए जरूर पहुंचते हैं. 
शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ : 18 दिसंबर, शनिवार सुबह 07.24 बजे से शुरू
पूर्णिमा तिथि समाप्त : 19 दिसंबर, रविवार सुबह 10.05 बजे समाप्त
दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि
दत्तात्रेय जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. इसके बाद पूजा के स्थान पर साफ सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें. इसके बाद एक चौकी रखकर उस पर साफ कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को धूप, दीप, रोली, अक्षत, पुष्प आदि अर्पित करें. इसके बाद भगवान दत्तात्रेय की कथा पढ़ें और अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें.
दत्तात्रेय कथा
एक बार महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे. तीनों देव साधु भेष में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की. तीनों देवताओं ने शर्त रखी कि वे उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं. इस पर माता संशय में पड़ गईं.
उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए. माता अनसूया ने अत्रि मुनि के कमंडल से जल निकाला और तीनों साधुओं पर छिड़का. इसके बाद तीनों ऋषि शिशु बन गए. तब माता ने देवताओं को भोजन कराया.
तीनों देवताओं के शिशु बन जाने पर तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की. तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर लिया और माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया. इसके बाद तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया. तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाने लगा.
 

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