दशहरे पर शमी वृक्ष की भी पूजा

दशहरे पर शमी वृक्ष की भी पूजा

भोपाल (महामीडिया) सनातन संस्कृति में प्रकृति पूजा का बड़ा महत्व बताया गया है और प्रकृति का मानव जीवन से संबंध बताते हुए इसको पर्वों से जोड़ा गया है, पूज्यनीय बनाया गया है। इसलिए वृक्षों की समय-समय पर पूजा-अर्चना का विधान धर्मशास्त्रों में किया गया है। विजयादशमी के दिन शस्त्र और शमी के पौधे की पूजा का विशेष महत्व होता है।
शास्त्रों में शमी को सोने के समान माना जाता है। मान्यता है कि दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को सोने का बना दिया था इसलिए तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है और शमी की पत्तियों को सोने की पत्तियां माना जाता है। महाभारत युद्ध से पहले वनवास के दौरान पांडवों ने अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र शमी वृक्ष पर छिपाए थे। वनवास समाप्त होने पर शमी वृक्ष की पूजा कर हथियार वापस लेकर युद्ध के लिए प्रस्थान किया था। संस्कृत में अग्नि को 'शमी गर्भ' के नाम से जाना जाता है।
दशहरे के अवसर पर शमी वृक्ष की पत्तियों को बतौर सोने के रूप में इष्टमित्रों और परिजनों को भेंट किया जाता है। दशहरे के दिन शमी वृक्ष का रोपण भी काफी शुभ माना जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में शमी का पौधा लगाकर उसके नीचे रोजाना दीपदान करने से घर-परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है। शमी का वृक्ष शनिदेव का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इस वृक्ष की सेवा और पूजा करने से शनि ग्रह की पीड़ा का नाश होता है।
ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर नें अपने ग्रंथ बृहतसंहिता में शमी के ज्योतिष गुण की चर्चा की है। वराहमिहिर के अनुसार जिस साल शमी का विकास अच्छा होता है अर्थात शमीवृक्ष ज्यादा फूलता-फलता है उस साल सूखे की स्थिति बनती है। इसलिए दशहरे पर इसकी पूजा कर आने वाले भविष्य का अंदाज जानकार लगाते हैं।
 

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