मलमास का महत्व

मलमास का महत्व

भोपाल (महामीडिया) मलमास ईश्वर की आराधना और दान के लिए विशेष माना गया है लेकिन शुभ व मांगलिक कार्य इस मास में वर्जित रहते हैं। मलमास की शुरुआत आज से से हो रही है, जो 16 अक्टूबर को पूरा होगा। जिस मास में सूर्य संक्रांति नहीं पड़ती उस मास को मलमास, अधिक मास और पुरुषोत्त्म मास कहा जाता है। इस दौरान शादी, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। मलमास में भगवान का स्मरण व पूजन करना शुभ माना जाता है। अधिक मास में किए गए दान पुण्य देता है। इस मास को आत्म की शुद्धि व मन की पवित्रता से भी जोड़कर देखा जाता है। मलमास में दान-पुण्य करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान लाभ मिलता है।
मलमास का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। मलमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस तरह मलमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है।
मलमास में क्या करना उचित
आमतौर पर मलमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। मलमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।

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