भगवान भोलेनाथ के विशिष्ट नामों की पौराणिक कथाएं

भगवान भोलेनाथ के विशिष्ट नामों की पौराणिक कथाएं

भोपाल [ महामीडिया ]भगवान शिव शंकर के अनेक नाम हैं।पर कोई भी नाम निरर्थक नहीं हैसभी के साथ नाम के गुण, प्रयोजन व तथ्य भरे हैं।सभी नाम सार्थक हैं।उनका अर्थ सोचा जाए और उसका मूल सोचा जाए तो सभी नाम भ्रम-निवृत्ति, मोह नाश और सौभाग्य लाभादि होते है।उनमें से कुछ नाम ये भी हैं जिनका स्मरण पुण्य हम श्रावणमास में ले सकते हैं-भक्तों के समस्त पाप और त्रिताप के नाश करने में सदैव समर्थ हैं और जो समस्त कल्याणों के निधान हैं उनको “शिव” कहते हैं।जो सबको अति विशेष स्वरूप में देखते हों वे भी पशु कहाते हैं।ज्ञानशून्य अवस्था में सभी पशु माने गए हैं ‘ज्ञानेन हीना: पशुभिस्समाना:’अतः ब्रह्मा से ले कर स्थावरपर्यंत सभी पशु माने जा सकते हैं और शिव सबको ज्ञान देने वाले तथा उनको अज्ञान से बचाने वाले हैं इसलिए यह “पशुपति” कहाते हैं।यह तय है कि मृत्यु को कोई नहीं जीत सकता।स्वयं ब्रह्मा भी युगांत में मृत्युकन्या के द्वारा ब्रह्म में लीन होते हैं।उनके अनेक बार लीन होने पर शिव का एक बार निर्गुण में लय होता है।अनेक बार मृत्यु की पराजय होती है इसीलिए इन्हें “मृत्युंजय” कहते हैं।एक बार भगवन शांत रूप से बैठे हुए थे।हिमाद्रितनया भगवती पार्वती ने विनोदवश हो पीछे से उनके दोनों नेत्र मूँद लिए पर वो नेत्र तो शिवरूप त्रैलोक्य के चन्द्र सूर्य थे। नेत्रों के बंद होते ही विश्व भर में अंधेरा छा गया। संसार अकुलाने लगा।तब शिव जी के ललाट से तीसरा नेत्र प्रकट हुआ।उसके प्रकट होते ही दसों दिशाएं प्रकाशित हो गई। अन्धकार तो हटा ही पर हिमालय जैसे पर्वत भी जलने लगे।यह देख पार्वती जी घबरा कर हाथ जोड़ स्तुति करने लगीं।तब शिवजी प्रसन्न हुए और संसार की स्थिति यथापूर्व बना दी।तभी से वे “चंद्रर्काग्निविलोचन” अर्थात् “त्रिनेत्र” कहलाने लगे।मन में प्रश्न उठता है कि शिव को गजचर्म के वस्त्र धारण करने की क्या आवश्यकता पड़ी? ऐसे वस्त्र धारण करने वालों को “कृत्तिवासा” कहते हैं।इसकी कथा स्कन्द पुराण में मिलती है।उसमें कहा गया है कि जिस समय महादेव पार्वती को रत्नेश्वर का महात्म्य सुना रहे थे उस समय महिषासुर का पुत्र गजासुर अपने बल के मद में उन्मत्त हो शिवगणों को कष्ट देता हुआ शिव के समीप पहुंच गया।उसे ब्रह्मा का वर था कि कंदर्प के वश होने वाले किसी से भी उसकी मृत्यु नहीं होगीशिव ने तो कंदर्प के दर्प का नाश किया था।सो उन्होंने इसका भी शरीर त्रिशूल में टांग कर आकाश में लटका दिया।उसने वहीं से भोले की स्तुति शुरू कर दी।शिव प्रसन्न हुए वर मांगने को कहा।इस पर गजासुर ने विनती की कि हे दिगंबर कृपा कर के मेरे चर्म को धारण कीजिए और अपना नाम “कृत्तिवासा” रखिये और भोले ने ‘एवमस्तु’ कहा।एक बार भगवान विष्णु ने किशोरावस्था का अत्यंत मनमोहक रूप किया।उनको देखने ब्रह्मा जैसे चतुर्मुख तथा अनंत जैसे बहुमुख अनेक देवता आए और उन्होंने एक मुख वालों की अपेक्षा अत्यधिक आनंद लिया।
 

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