चंद्रग्रहण का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्‍व

चंद्रग्रहण का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्‍व

नई दिल्ली[ महामीडिया ] जून के माह में सूर्य और चंद्रग्रहण दोनों ही लगने वाले हैं। चंद्रग्रहण जहां जून के पहले सप्‍ताह के पांचवें दिन अर्थात 5 जून को लगेगा तो वहीं 21 जून को सूर्य ग्रहण  लगेगा। इन दोनों की ही अपनी पौराणिक कथाएं, मान्‍यताएं और महत्‍व हैं। इसके अलावा इन दोनों का ही वैज्ञानिक महत्‍व भी है। यहां पर हम आपको इन दोनों ही महत्‍व और इस खगोलीय घटना के पीछे छिपे कारणों की जानकारी दे रहे हैं।चंद्रग्रहण उस समय लगता है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक ही सीध में होते हैं। यह उस वक्त लगता है जब पूरा चांद निकला हुआ होता है और पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। ऐसे में सूर्य की किरणें चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाती हैं। आपको बता दें कि इस वर्ष चार चंद्रग्रहण लगने हैं। इनमें से पहला चंद्रग्रहण एक जनवरी को लग चुका है। दूसरा इस माह है। तीसरा जुलाई और चौथा नवंबर में होगा। 5 जून को होने वाला चंद्रग्रहण उपछाया होगा। इसका अर्थ है कि चांद, पृथ्वी की हल्की छाया से होकर गुजरेगा।यह चंद्रग्रहण 3 घंटे और 18 मिनट का होगा। 5 जून को इसकी शुरुआत रात 11.15 होगी और 6 जून को सुबह 12.54 बजे तक ये अपने अधिकतम चरण में होगा। 6 जून की सुबह 2.34 पर ये खत्म हो जाएगा। एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के लोग इस ग्रहण को देख सकते हैं। आपको यहां पर ये भी बता दें कि उपछाया चंद्र ग्रहण होने के कारण लोगों के बीच सामान्य चांद और ग्रहण वाले चांद के बीच अंतर करना मुश्किल होगा। इस ग्रहण को पूरे भारत में देखा जा सकेगा। इस ग्रहण के दौरान चंद्रमा के आकार में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। इस दौरान चंद्रमा की छवि कुछ धुंधली जरूर हो जाएगी और ये कुछ मटमैला सा दिखाई देगा। इसकी वजह यह है कि यह वास्तविक चंद्रग्रहण नहीं है यह एक उपछाया चंद्रग्रहण है। इससे पहले 10 जनवरी को ऐसा ही चंद्रग्रहण लगा था।हिंदू धर्म में चंद्रग्रहण के पीछे राहु व केतु का प्रभाव होता है। समुद्र मंथन के दौरान देवताओं व दानवों के बीच अमृत पाने को लेकर युद्ध चल रहा था। अमृत का देवताओं को सेवन करवाने के लिए भगवान विष्णु सुंदर कन्या का रूप धारण कर सभी में अमृत बांटने लगे। इस बीच एक असुर देवताओं के बीच जाकर बैठ गया। उसने जैसे ही अमृत हासिल किया तो भगवान सूर्य व चंद्रमा को इस बात का पता चल गया। जब उन्होंने इसकी जानकारी भगवान विष्णु को दी तो उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। अमृत पीने के कारण वह मरा नहीं तथा उसका सिर व धड़ अलग होकर राहु तथा केतु नाम से विख्यात हो गए। इस घटना के कारण राहु व केतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में लगते हैंग्रहण लगने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करती है, जिसे चंद्र मालिन्य कहते हैं। उपछाया चंद्र ग्रहण के दौरान चंद्रमा उपछाया में प्रवेश करके उपछाया शंकु से ही बाहर निकल कर आ जाता है और भूभा जिसे अंग्रेजी में (Umbra) कहते हैं, में प्रवेश नहीं करता है। इसलिए उपछाया के समय चंद्रमा का बिंब केवल धुंधला पड़ता है, काला नहीं होता है। यही वजह है कि इसे उपछाया चंद्र ग्रहण कहते हैं।इस ग्रहण में दूसरे ग्रहण के समान बाध्‍यताएं नहीं होती हैं। इसमें न तो सूतक माना जाता है और न ही पूजा-पाठ की कोई मनाही है। इसके अलावा इस दौरान जागने की भी पांबदी नहीं है। इसे न देखने जैसा भी न‍ियम नहीं है। इस दौरान आप भोजन भी कर सकते हैं और सामान्य रूप से दिनचर्या रख सकते हैं। ग्रहण के लिए दान करने का नियम भी इस पर लागू नहीं होता है। इसके बावजूद आपको बता दें कि दान देना प्राचीन काल से भारतीय संस्‍कृति का एक हिस्‍सा रहा है। भले ही उपछाया चंद्रग्रहण के दौरान दान देने की बाध्‍यता नहीं है, लेकिन ऐसा करने से जो मानसिक शांति और दूसरों को लाभ मिलता है इसकी कल्‍पना करना भी सुखद होता है।

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