धर्मः ‘अक्षत’ का महत्व

धर्मः ‘अक्षत’ का महत्व

भोपाल [महामीडिया] पूजा के दौरान अक्षत का विशेष महत्व है। अगर पूजा के दौरान कोई सामग्री न हो तो उसकी भी कमी अक्षत पूरी कर देता है। अक्षत को अन्न में श्रेष्ठ माना जाता है। भगवान को जब भी अक्षत अर्पित किया जाता है तो वो साबुत अक्षत होता है, टूटा हुआ नहीं। अक्षत का अर्थ है, जिसकी क्षति न हुई हो यानी जो पूर्ण हो वो अक्षत है। पूजा में अक्षत चढ़ाने का भाव ये है कि हमारा पूजन भी अक्षत की तरह पूर्ण हो। इसमें कोई बाधा न आए। सफेद रंग होने की वजह से चावल को शांति का प्रतीक भी माना जाता है। अक्षत के माध्यम से भक्त भगवान से विनती करते हैं कि जिस प्रकार हमारी आप पर पूर्ण श्रद्धा है, आप भी हम पर पूर्ण कृपा बनाकर रखें।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मुझे अर्पित किए बिना जो कोई अन्न और धन का प्रयोग करता है, वो अन्न और धन चोरी का माना जाता है। चावल को सबसे शुद्ध अन्न माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद रहता है। इसलिए पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाते। इसके अलावा ये भी मान्यता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी। ऐसे में लोग इस भाव के साथ अक्षत अर्पित करते हैं कि हमारे पास जो भी अन्न और धन है, वो आपको समर्पित है। इस प्रकार वे चोरी के अन्न और धन के पाप से मुक्त हो जाते हैं।
शास्त्रों में अन्न और हवन को ईश्वर को संतुष्ट करने वाला साधन माना गया है। अन्न अर्पित करने से भगवान के साथ-साथ पितर भी तृप्त होते हैं। ऐसे में ईश्वर के साथ पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है और घर में खुशहाली आती है।
 

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