पंचदिवसीय दीपावली महोत्सव की महत्ता
भोपाल [ महामीडिया] माह अक्टूबर के तृतीय गुरुवार को आज महर्षि संस्थान में ज्ञानामृत सत्संग का दिवस था। इस अवसर पर वैश्विक संत महर्षि महेश योगी जी ने अपने उपदेशामृत अमृत प्रवाह में बताया कि "चातुर्वर्ण व्यवस्था एवं धर्म कर्म की व्यवस्था वेद भूमि भारत की व्यवस्था है। पूरी दुनिया को एक साथ भारत सहारा दे रहा है। भारत विश्व की अनंत अनेकताओं का प्रशासन कर रहा है। विश्व में राम राज्य के प्रशासन के लिए वैदिकों का प्रशिक्षण एवं नेतृत्व आवश्यक है। भारत की यह व्यवस्था जन्म के आधार पर कर्म पर निहित है और यही धर्म है। गुरुदेव का कहना था कि आने वाले दिनों में पूरी दुनिया एक परिवार होगी। जिसमें कृषि, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं प्रशासन सभी क्षेत्र महत्वपूर्ण होंगे। मनु हमारे प्रणेता थे। प्रशासन एवं राजनीति के क्षेत्र में उनका 8,000 वर्ष पुराना इतिहास है। मनु की गुफा के पास अकूत ज्ञान का भंडार रहा है। इसलिए आने वाले दिनों में पूरी दुनिया इस ज्ञान की चेतना का अनुभव कर सकेगी। इसके लिए हमें मनु विश्वविद्यालय का मार्ग प्रशस्त करना होगा। गुरुदेव का कथन था कि मनुस्मृति वेद की स्मृति है और पूर्ण ज्ञान की स्मृति है। यह ज्ञान की परंपरा निरंतर चली आ रही है। जिसका जागरण चेतना में होता है और यह भावातीत ध्यान के निरंतर एवं नियमित अभ्यास से आती है। वेद सर्वत्र एवं नित्य है। वेद में पूर्ण ज्ञान निहित है। पूर्ण ब्रम्ह इसमें स्पंदित है। यह एक बड़ा ज्ञान है। इसलिए हमें राजनीतिज्ञों में चेतना जागृत करने का कार्य करना है। आत्मा में दोनों गुण शामिल हैं जिसमें क्रिया शक्ति एवं ज्ञान शक्ति शामिल हैं। यह संस्कृत भाषा में है। संस्कृत बोलने से पूर्णता का प्रवाह होता है। वेद में पूर्ण ज्ञान एवं क्रिया का प्रवाह होता है इसलिए वेद का नित्य पाठ करो,वेदों का नियमित अध्ययन करो। यह वैदिक गुरु परंपरा का वरदान है। परम पूज्य संत महर्षि महेश योगी जी का कहना था कि अब सारे विश्व में राम राज्य की शासन प्रणाली का समय आ गया है। इसके लिए हमें वैदिक शिक्षा का प्रचार प्रसार सहित संवर्धन करना होगा।
आज के ज्ञानामृत सत्संग में पंच दिवसीय दीपोत्सव पर्व पर अपने विचार रखते हुए सुप्रसिद्ध कथा वाचक एवं महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय के आचार्य निलिम्प त्रिपाठी ने कहा कि सर्वप्रथम धनतेरस के दिन तेरह दीपक जलाने की परंपरा है। जिसे त्रयोदशी के नाम से भी पुकारते हैं। इस दिन अंधकार को हटाने के लिए प्रकाश किया जाता है। इसके साथ ही भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है क्योंकि भगवान धन्वंतरि इसी दिन अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे एवं वैभव एवं आरोग्य का आशीर्वाद दिया था।
दीपोत्सव के द्वितीय दिवस रूप चौदस के बारे में उन्होंने बताया कि यदि किसी को रूप का आशीर्वाद चाहिए तो उसे ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए और शरीर शोधन की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए। इस दिन 14 दीपक जलाए जाते हैं और चौदहवें दीपक को पूरे घर में घूमाना चाहिए।
दीपोत्सव के तृतीय दिवस दीपावली पर्व पर प्रकाश डालते हुए त्रिपाठी जी ने कहा कि दीपों की श्रंखला को दीपावली कहते हैं। इस दिन अष्ट लक्ष्मी पूजन करना चाहिए यह लक्ष्मियों की सिद्धता का दिवस है। चतुर्थ दिवस गोवर्धन पूजा पर प्रकाश डालते हुए आचार्य ने कहा कि गोवर्धन पूजा में 56 भोग लगाने की परंपरा है। इसका मूल अर्थ अपने साथ-साथ अपने आसपास एवं परिवेश में उत्सवधर्मिता को फैलाना है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा पूर्ण मानी जाती है। पंचम दिवस यम द्वितीया यानी भाई दूज के बारे में उन्होंने बताया कि इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाता है और बहन से रक्षा सूत्र बंधवाता है। इस अवसर पर एक पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य त्रिपाठी ने बताया कि दीपावली एवं दिवाली में सिर्फ शब्दों का शॉर्टकट है। इसलिए कुछ लोग इसे दिवाली के नाम से भी पुकारते हैं।
एक दूसरे पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य का कहना था कि गणेश जी शुभता के प्रतीक हैं एवं प्रथम पूज्य हैं इसलिए मां लक्ष्मी एवं मां सरस्वती के साथ गणेश भगवान की पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट का महत्व पूछे जाने पर आचार्य ने बताया कि अन्नकूट का तात्पर्य घर में धन और धान्य भरा रहे इसलिए गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट महोत्सव की अपनी विशिष्ट पहचान है।
ज्ञानामृत सत्संग का आयोजन महर्षि राष्ट्रीय सांस्कृतिक केंद्र, अरेरा कॉलोनी भोपाल में किया गया। आज के सत्संग का शुभारंभ महर्षि संस्थान की परंपरा अनुसार सर्वप्रथम गुरु परंपरा पूजन एवं भावातीत ध्यान का अभ्यास किया गया। इस संपूर्ण सत्संग का लाइव प्रसारण रामराज टीवी के वेबसाइट, यूट्यूब एवं फेसबुक चैनलों पर भी किया गया।